एक न एक सीता
रोज ही देती है
अग्निपरीक्षा
और
राम युग की तरह
निष्कलंक
निकल ही आती है
बाहर
मगर नहीं फटता अब
धरती का सीना
नहीं समाती उसमेंकोई भी सीता
शायद धरती और
इस जमाने की जानकी
जानती है
पुरुष छल
कि देनी होगी
जिंदगी भर उसे
कदम-कदम पर परीक्षा
जब अकारण कलंक को ढोना है
तो क्यों इस
अमूल्य जीवन को
खोना है.....
तस्वीर--साभार गूगल
3 comments:
बेहद भावपूर्ण कविता
ओह, बहुत सुंदर
जब अकारण कलंक को ढोना है
तो क्यों इस
अमूल्य जीवन को
खोना है..........bahut sundar abhivyakti
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