Monday, August 12, 2013

नि‍यति है या प्रकृति.....


फि‍र एक बार
अवि‍श्‍वास..आशंका और अभि‍शाप 
के बीच
झूलता मेरा अस्‍तित्‍व
मुट़ठी भर सुख पाना
और खातिर इसके
सारा अर्जि‍त गंवाना
जाने नि‍यति है या प्रकृति
पर बार-बार होता है
हमें छलता है
और सारे आरोप-प्रत्‍यारोप
के बीच
पेंडुलम की तरह
झूलता मेरा अस्‍तित्‍व


तस्‍वीर--साभार गूगल

8 comments:

Aparna Bose said...

और सारे आरोप-प्रत्‍यारोप
के बीच
पेंडुलम की तरह
झूलता मेरा अस्‍तित्‍व … वाह , एक सशक्त रचना

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

बहुत सुंदर सशक्त रचना ,,,

RECENT POST : जिन्दगी.

Satish Chandra Satyarthi said...

बढ़िया कविता...

Dr. Shorya said...

बहुत उम्दा

विभूति" said...

खुबसूरत प्रस्तुती......

दिल की आवाज़ said...

बहुत बढ़िया ...

सुनीता अग्रवाल "नेह" said...

sach hai ..sare aropo pratyaropo ke bich jhulta astitav ..sundar rachna ..badhayi :)

Unknown said...

वाह बहुत सुंदर जज़्बात