नहीं लिखना चाहती अब मैं
उदासी भरा कोई गीत
ना ही देखना चाहती हूं
उदास आंखों से, गिर रहे
पेड़ों के हरे पत्तों को
मैं ये भी नहीं चाहती कि
चौखट पर दिया जलाकर
मन के अंधेरे को हरने की
करूं, नाकाम सी कोशिश
मगर, चैत के इन लंबे दिन
और अजनबी सी रातों का
क्या करूं
,
कि इन दिनों
चूमकर पलकों को नींद भी
तुम सा ही दूर चली जाती है
तुम्हें भी पता है ये बात
कि आधी रात के बाद का वक्त
न चांद से मोहब्बत होती है,
न भाते हैं सितारे
बेचैन मन फिरा करता है
यादों की गलियों में उदास सा.....
तस्वीर--साभार गूगल
9 comments:
आधी रात के बाद वाकई बहुत मुश्किल होती है भावनाओं को .......
यादों में घूमता मन ...सुन्दर रचना ...
आधी रात के बाद ही आपकी कविता का मर्म समझ पाउँगा | कोशिश और उम्मीद कर रहा हूँ के मेरी नींद भी आपकी कविता में लिखे शब्दों से मेल खाएगी | सुन्दर कविता | उम्दा विचार | खूबसूरत रचना | आभार
कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
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बहुत उम्दा प्रस्तुति
recent postकाव्यान्जलि: होली की हुडदंग ( भाग -२ )
bahut sunder ...man ko chuti rachana
akshr nidon ka rato me ud jana kuch to hai ,sundar samvedanshil rachna
बहुत ही भावपूर्ण प्रभावशाली प्रस्तुति.
सुंदर रचना सुंदर भाव .....
साभार.....
मगर, चैत के इन लंबे दिन
और अजनबी सी रातों का
क्या करूं ,
कि इन दिनों
चूमकर पलकों को नींद भी
तुम सा ही दूर चली जाती है..वाह !
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