(( सभी मित्रों को होली की बधाई व शुभकामनाएं....मेरी तरफ से सारे लोग गुलाल लगा लें....;क्योंकि मुझे गुलाबी रंग पसंद है...... :))
होली......टेसू से बने प्राकृतिक रंगों की होली..........लाल-हरे-पीले रंगों की होली..........कीचड़ की होली..........गली-गली घूमती युवाओं की टोली.......कभी होंठों पर गाली तो कभी खेलते कपड़े फाड़ के होली...........ये थी कभी झारखंड-बिहार की होली.......जो इन दिनों कहीं खो सी गई है।
फागुन के चढ़ते ही होली का उमंग अपने परवान पर होता है। चारों तरफ गलियों में जोगीरा स र र र र र की धुन....काला-पीला हरा-गुलाबी...कच्चा पक्का रंग और रंग बरसे की धुन में लोग पागल से हो जाते थे।
फागुन के चढ़ते ही होली का उमंग अपने परवान पर होता है। चारों तरफ गलियों में जोगीरा स र र र र र की धुन....काला-पीला हरा-गुलाबी...कच्चा पक्का रंग और रंग बरसे की धुन में लोग पागल से हो जाते थे।
सबसे पहले होलिका दहन की तैयारी होती थी। वो भी पूरे जोश के साथ। झारखंड-बिहार के गांवों
में चलन था कि प्रत्येक घर से लकड़ी मांग कर इकट़ठा किया जाता था औशाम को लग्न अनुसार होलिका दहन किया जाता था। गांव के सभी युवक ढोल-मजीरे के साथ गली-गली गीत गाते घूमते थे....सत लकड़ी दे सत कोयला दे। और प्रत्येक घर से गृहिणी बाहर आकर उन युवकों को सात लकड़ी देती थी। तब
गैस चूल्हा नहीं आया था। हर घर में लकड़ी के चुल्हे में खाना बनता था।
लोग खुशी-खुशी होली की तैयारी करते थे। युवक कई बार शरारत भी करते थे। एक
बार शाम को सो रहे बूढ़े व्यक्ति को खाट सहित रात में उठाकर तालाब में
छोड़ आए थे। रात भर वो पानी में ठिठुरते रहे। जो हंगामा मचा कि पूछिए
मत। खैर....
होली के सप्ताह भर पहले से शाम को मंदिर में लोग एकत्र होकर फगुआ गाते थे। वो लंबी
तान छिड़ती कि महिलाएं खिड़की से कान लगा मजा लेने से खुद को न रोपाती। बड़ा मजेदार दिन-रात होता था तब। दूसरे दिन सुबह से होली का जो रंग चढ़ता कि बस....। बच्चे-बड़े सब सराबोर। भंग और ठंडई का दौर पर दौर चलता। क्या छोटा क्या बड़ा।
देवर-भाभी, जीजा-साली तो इस दिन का इंतजार कब से करते थे और महीनों तक फगुआहट
की मुस्कराहट होंठो में दबाए रहते। खूब-खूब रंग खेला जाता। यहां तक कि मिट़टी-कीचड़- मोबिल तक का इस्तेमाल करते लोग। घर में छुपने वालों को घर से खींचकर निकाला जाता और फिर....... उफ........जो दुर्गति होती, कि महीनों याद रहता था। लोग उन्मत हो जाते। थक-थक जाते। फिर ये रंगों का खेला दोपहर ढलते तक समाप्त हो जाता। सब लोग वापस घर में नहाते-खाते और शाम की तैयारी में लग जाते। शाम यानी गुलाल का समय....छोटों को आर्शिवाद देने और हमउम्र से गले मिलने का वक्त। लोग एक-दूसरे के घर जाते। बड़ों के पांव पर गुलाल लगाते। शालीनता से मनती होली। इस दिन शायद ही कोई अपने घर में खाना खाता होगा। मगर तरह-तरह के व्यंजन सबके घरों में बनते। छोटानागपुर का स्पेशल......धुसका, पुआ, बर्रा और मांसाहारी लोग जरूर मटन-चिकन बनाते। इसके बिना तो यहां होली ही न मने। साथ-साथ मिठाइयां और दही-बड़े भी। तब कानफाड़ू लाउडस्पीकर में बजता रहता था .......बड़ो घर के बेटी लोग..... और आज न छोड़ेंगे.....खेलेंगे हम होली, सुनकर लोग नाराज नहीं होते- मंद-मंद मुस्कराकर आनंद लेते थे।
मगर अब न वो रंग रहा न उत्साह। न अब वो भाईचारा है न उमंग। लोग होली को
पानी की बर्बादी मानते हैं। बात सच है मगर एक दिन इसी बहाने लोगों के मन
के मैल तो धुल जाते थे। मगर अब तो लोग तिलक होली खेलते हैं। कोई एक-दूसरे
के घर नहीं जाता। होली मिलन समारोह कर पर्व की खानापूर्ति की जाती है। लोग सप्ताह भर
पहले से होली मलिन करते हैं और चुटकी भर गुलाल गालों में लगा कर खेल ली होली।
जब जेहन में होली की याद सप्ताह दस दिन तक न रहे तो कैसी होली............
पहले से होली मलिन करते हैं और चुटकी भर गुलाल गालों में लगा कर खेल ली होली।
जब जेहन में होली की याद सप्ताह दस दिन तक न रहे तो कैसी होली............
तस्वीर--साभार गूगल
12 comments:
बहुत बढ़िया रश्मि जी। आपने बीते दिनों की याद ताजा कर दी। बीते दिन अवश्य लौट कर आएंगे और आपको रंगातिरेक में तर-बतर करेंगे, ऐसी कामना है। आपको इस होली की अनेक रंगकामनाएं।
अब न वो रंग रहा न उत्साह। न अब वो भाईचारा है न उमंग।,,
होली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाए,,,
Recent post : होली में.
मगर अब न वो रंग रहा न उत्साह। न अब वो भाईचारा है न उमंग.....सच कहा रश्मि जी आज की भागमभाग ज़िन्दगी में बचपन के वो रंग और मस्ती पता नहीं कहाँ खो गयी..????
आपको भी गुलाल मेरी तरफ से :) हैप्पी होली
हमें भी अपने बचपन की होली याद आ गई ! :)
होली का पर्व आपको सपरिवार शुभ और मंगलमय हो!
सादर
होली के ये रंग ... जाने-पहचाने से
होलिकोत्सव की अनंत शुभकामनाएं
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
अब कहाँ वोह होली,आज तो किसी के साथ जरा रंग का स्पर्श भी लड़ने को मजबूर कर देता है.कहाँ वे रंग,कहाँ वह उत्साह,घर में घुस कर , टी वी देखना ही होली रह गया है.
बहुत सुंदर
कभी कभी ऐसी चीजें पढने को मिलती हैं
होली की शुभकामनाएं
अरसा हो गया रंग खेले..अब तो होली पर 'शालीनता' का अर्थ भी बदलने लगा है.
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!
लोग भी तो अब वह नहीं रहे जो पहले थे !
आपने बचपन की होली की याद दिला दी
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