Sunday, March 3, 2013

घर चला सूरज...



बस.....

अब घर जा रहा है सूरज
नीला आकाश अंधेरे की चादर ओढ़ेगा
आसमान की उलटी तश्‍तरी में
सोने-चांदी से सि‍तारे जगमगाएंगे

मैं देखूंगी उन्‍हें, खुश हो टिमटि‍माउंगी भी
अंधेरे में, जुगनू की तरह

पर आकाश के सि‍तारे ने
जमीं के जुगनू की
कब की है परवाह.......

काश ! ये सि‍तारे एक बार जमीन पर उतर आते....और सूरज के छुपते ही तुम्‍हारी याद न मारते मुझे डंक....
मैं भी चांदनी रात में चमकती सफ़ेद परी बनकर....है न जानां.. ??


तस्‍वीर--कल शाम की

8 comments:

धनपत स्वामी said...

जय हो जी...बेहद खूबसूरत ।

रचना दीक्षित said...

शब्दों का सुंदर चयन. भावों का सुंदर शब्दिकरण. इस बढ़िया प्रस्तुति के लिये अभिनन्दन.

पूरण खण्डेलवाल said...

सुन्दर !!

Sunil Kumar said...

बहुत ही सुंदर भावाव्यक्ति बधाई

Anonymous said...

bahut sunder,dil ko chhu gyi.apki pangtiya....
काश ! ये सि‍तारे एक बार जमीन पर उतर आते....और सूरज के छुपते ही तुम्‍हारी याद न मारते मुझे डंक....

Rajendra kumar said...

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति.

Aditi Poonam said...

बहुत सुंदर भाव और उतनी ही सुंदर अभिव्यक्ति
इससे भी बढ़कर खूबसूरत चित्र........
साभार....

डॉ एल के शर्मा said...

मैं देखूंगी उन्‍हें, खुश हो टिमटि‍माउंगी भी
अंधेरे में, जुगनू की तरह

पर आकाश के सि‍तारे ने
जमीं के जुगनू की
कब की है परवाह.......
गज़ब का उद्विपन भाव .....