Friday, March 1, 2013

चाहतों से उपजी उदासियां.......



रोज़ रात सोचती हूं
दि‍न भर की
ज़मा उदासी को
एक टोकरी में भर
कि‍सी नदी में बहा आउं
इस संदेशे के साथ

कि

मेरी अंतहीन चाहतों से उपजी
उदासियों
तुम्‍हारा अंत यही है
कि हर
हर अभि‍लाषा के पेड़ पर
फल नहीं आते
और हर खूबसूरत फूल की
खुश्‍बू
सबको नहीं भाती

फि‍र भी

रात रोज़
उदास लम्‍हों की
सौगात ले कर आता है
और पीला चांद
नीम की टहनी से झांकता रहता है.....

तस्‍वीर--मेरे पैतृक गांव गोविंदपुर की

4 comments:

Harihar (विकेश कुमार बडोला) said...

सुन्‍दर।

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी रचना
बहुत सुंदर

Rajendra kumar said...

अतिसुन्दर प्रस्तुति.

Onkar said...

बहुत प्यारी रचना