Sunday, November 4, 2012

बहलाते हो क्‍यों

मुझको झूठी बातों से बहलाते हो क्‍यों
आशाओं का झूठा दीप जलाते हो क्‍यों।।

करो यकीं, मुझे तुमसे कोई शि‍कवा नहीं
फि‍र इनकार-ए-मोहब्‍बत से घबराते हो क्‍यों।।

मेरी न सही, कि‍सी की मोहब्‍बत तो रास आई तुम्‍हें
फि‍र मेरे बि‍खरने पर आंसू बहाते हो क्‍यों......।।

10 comments:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

इस तरह से मुझे बर्बाद किया है ,,,,,,, उसने,
कि गया कुछ भी नही,और रहा कुछ भी नही,,,,,

RECENT POST : समय की पुकार है,

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

अच्छी रचना
बहुत सुंदर

Pallavi saxena said...

बहुत बढ़िया ...

Dr.NISHA MAHARANA said...

dilenadan ..jo thahra isiliye aanshu bhata hai ....bahut acchi prastuti ....rashmi jee...

Rohitas Ghorela said...

बहुत खूब ....उम्दा :)

Rohitas Ghorela said...

बहुत खूब ....उम्दा :)

अरुन अनन्त said...

बहुत खूब सुन्दर रचना

Vinay said...

अद्भुत रचना

Unknown said...

बहुत सुंदर अच्छी रचना
मुझको झूठी बातों से बहलाते हो क्‍यों
आशाओं का झूठा दीप जलाते हो क्‍यों।।
Recent Post"Khada Hai'

Unknown said...

bahut umda rachana