ऐ.....ऐ....ऐ...अहा...आखिरकार पकड़ लिया ..बहुत भागते थे न दूर...कभी तुम मेरे मनमाफिक नहीं रहे्.....कभी मैंने तुम्हारी कद्र नही की......पर अब....खुश हूं...चैन की लंबी सांस भी ली कि अंतत: पकड़ ही लिया.....मगर ये क्या....तुम तो फिर हाथों से फिसल गए....कभी रेत की तरह तो कभी मछली की तरह.......जान गई हूं कि
तुम मेरे हिसाब से नहीं चल सकते.......और फिर मुंह से निकला.................''ये-----जिंदगी''
7 comments:
खूबसूरत जानकारी
sachhi ye jindagi bhi naa....magar isi pakadne ki koshish me hi to sara sukh hai:)
जिंदिगी और समय ये कभी नही रुकते जितना भी हो सके सदुउपयोग करना चाहिए,,,,,
RECENT POST LINK...: खता,,,
वक्त को पकड़ना -संभव कहाँ !
बहुत अच्छे.
keep it up !!
Kya khub likha
Wah wah kya khub...
Post a Comment