"कोई ऐसे भी जाता है क्या
इस कदर सबको रूलाता है क्या...."
सिर्फ 2 महीने की थी जब अमित्युश की जिद पर घर आई थी। भूरी-भूरी सी...चमकीली आंखों से इधर-उधर देखती, एक बास्केट में बंद कर.....तीन साल के अमित्युश के लिए तो प्यारी खिलौना थी। पहले दिन से ही सबको पहचान लिया। अमित्युश ने बड़े प्यार से उसका नाम रखा...स्कूबी। हर वक्त उसके पीछे-पीछे। अमित्युश सोता तो पलंग पर उसके पांव के पास सोती। बाथरूम जाता तो दरवाजे के बाहर पहरा देती। स्कूल जाने वक्त गेट तक छोड़ती और नीचे ही आने की आहट पाकर भौकना शुरू कर देती। अगर हम बाहर जाते....और वापस आने पर एकदम से दोनों पैर उठाकर चढ़ जाती। चारों तरफ मंडराती। अगर उसे प्यार पाने की इच्छा होती तो पास आकर गरदन रगड़ने लगती शरीर पर।
रात को दरवाजा बंद कर हम सोते तो वह अपनी जगह पर नहीं जाकर डोरमैट पर ही सोई रहती। कई बार तो मैं झुंझला उठती...कि यह अपने जगह पर क्यों नहीं सोती...;क्योंकि अचानक बाहर निकलने पर मैं टकरा कर गिरते-गिरते बची हूं। उसे सुबह उठते ही बिस्किट खाने की आदत थी। मगर वह ऐसे कभी नहीं लेती, जब तक कि उसे प्यार न करो....सर पर हाथ न फिराओ। अगर यूं ही लेने के लिए उसे डांटती तो स्कूबी बिस्किट मुंह में दबाकर जमीन में रख देती।
मुझे याद है एक बार मैं अपने बड़े बेटे अमित्युश को सोता छोड़कर घंटे भर के लिए बाहर जा रही थी। जाने क्या मन में आया....मैंने स्कूबी से कहा...इसे देखना, कहीं मत जाना...मैं आ रही हूं। वापस आकर देखती हूं वो वहीं सर उटाकर बेटे की तरफ देखते हुए बैठी है। मुझे देखकर चुपचाप उठकर बाहर चली गई। मुझे आश्चर्य के साथ खुशी भी हुई कि....इतना बात मानती है। वैसे भी एक बार कहो...कि आओ....वो आ जाती...जाओ..तो चली जाती।
और जब से अभिरुप हुआ....वह तो सभी जानवरों पर जान देता है। सारा दिन खुद से चिपकाए घूमता रहता है। गोद में बिल्ली लेकर बाहों में स्कूबी को समेटे बैठा रहता है। उसके उपर चढ़कर सारा घर घूमता....खेलता...कभी दौड़ कर....कभी चढ़कर। उसे जो भी खाने में अच्छा लगता, उसका एक टुकड़ा बूजी को खिलाता.....हां....उसने स्कूबी को प्यार से बूजी कहकर बुलाना शुरू किया था....और वह जानती थी अपने दोनों नामों के बारे में। कभी-कभी तो अभिरुप स्कूबी के बिस्तर पर या ऐसे ही जमीन पर उसके साथ लेटा पाया जाता। मुझ पर नजर पड़ते ही उठकर खड़ा हो जाता और कहता.....मां..ये मुझे प्यार करने कह रही थी।
मगर मेरी प्यार स्कूबी कुछ दिनों से बीमार चल रही थी। काफी इलाज कराया। लगा अब ठीक हो जाएगी। पर सुस्त हो गई थी। दो दिन पहले ही रात को 12 बजे अभिरुप अपने कमरे से निकल भागा......मैंने देखा तो वह उसे प्यार कर रहा था। इधर कुछ परेशानी के कारण मैं उसे प्यार भी नहीं कर पा रही थी और कमरे में काम चलने के कारण स्कूबी भी दरवाजे पर ही बैठी रहती। कल उसने खाना भी नहीं खाया। आज सुबह बच्चों को स्कूल भेजने की आपाधापी में देखा कि वह थोड़ी दूर जाकर सुस्त पड़ी है। मैंने आवाज भी दी.......सांसे चल रही थी मगर न उसने सर उठाया....न ही हमेशा की तरह पूंछ हिलाया.....मम्मी ने डाक्टर को फोन किया और इधर मैं बच्चेों को स्कूल भेज कर थोड़ी देर में उसके पास गई...........उसकी आंखों खुली थी.....वो मर चुकी थी। हम सब रोने लगे। अब भी...........सोच रही हूं बच्चे स्कूल से वापस आएंगे तो उन्हें कैसे बताउंगी ये बात.......कैसे संभालूंगी..................
5 comments:
सुन कर बहुत गहरा दुःख हुआ परन्तु आना और जाना प्रकृति की रीत है जिसे देर सवेर हर जीवित प्राणी को निभाना ही पड़ता है। :(
सुन कर बहुत गहरा दुःख हुआ परन्तु आना और जाना प्रकृति की रीत है जिसे देर सवेर हर जीवित प्राणी को निभाना ही पड़ता है। :(
जानवर भी प्यार के भूखे होते है,और आपने मालिक
के प्रति वफादार,इस कारण से उनसे आत्मिक लगाव हो जाता है,,,,ऐसे में उनके न रहने का दुख होना स्वाभाविक है,,,,,,,
RECENT POST LINK...: खता,,,
बेहद मार्मिक प्रस्तुति
AUR KYA KAH SAKTE HAIN ISKE SIWA KI... JO CHALA GAYA USE BHOOL JA.....
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