Monday, October 29, 2012

'वक्‍त'

ऐ.....ऐ....ऐ...अहा...आखि‍रकार पकड़ लि‍या ..बहुत भागते थे न दूर...कभी तुम मेरे मनमाफि‍क नहीं रहे्.....कभी मैंने तुम्‍हारी कद्र नही की......पर अब....खुश हूं...चैन की लंबी सांस भी ली कि अंतत: पकड़ ही लि‍या.....मगर ये क्‍या....तुम तो फि‍र हाथों से फि‍सल गए....कभी रेत की तरह तो कभी मछली की तरह.......जान गई हूं कि
तुम मेरे हि‍साब से नहीं चल सकते.......और फि‍र मुंह से नि‍कला.................''ये-----जिंदगी''

7 comments:

travel ufo said...

खूबसूरत जानकारी

Bhawna Kukreti said...

sachhi ye jindagi bhi naa....magar isi pakadne ki koshish me hi to sara sukh hai:)

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

जिंदिगी और समय ये कभी नही रुकते जितना भी हो सके सदुउपयोग करना चाहिए,,,,,

RECENT POST LINK...: खता,,,

प्रतिभा सक्सेना said...

वक्त को पकड़ना -संभव कहाँ !

Rohitas Ghorela said...

बहुत अच्छे.
keep it up !!

shivendra said...

Kya khub likha

shivendra said...

Wah wah kya khub...