कल के गुजरे मंजर, जो मुझे याद न होते
तो आज इस हाल में हम जिंदा कहां होते...
समंदर में ही फकत उठता चांद रात में ज्वार
गर दिल न होता तो बताओ ये तूफां कहां होते...
कद्र होती नहीं यहां हर एक के अश्कों की
दामन की मानिंद रेत न मिलता तो ये आंसू जज्ब कहां होते.....
वफा मिलती इस जमाने में हमें भी औरों की तरह
तो आज इस कदर हम तन्हां कहां होते....
12 comments:
बहुत सुंदर...
Rashm ji, bahut..khoob likha hai.
Meenakshi Srivastava
meenugj81@gmail.com
वफा मिलती इस जमाने में हमें भी औरों की तरह
तो आज इस कदर हम तन्हां कहां होते....
बहुत सुंदर क्या बात हैं
वाह .. सच खा है ... जो वफ़ा रहती जमाने में तो यूं तन्हा न होते .. लाजवाब ..
बहुत ही बढ़िया
सादर
behtrain prastuti.
वाह क्या बात है बहुत खूब ...लाजवाब प्रस्तुति।
बहुत बढ़िया...
बहुत बढ़िया
आपने वाकई बहुत अच्छा लिखा है!!!!!!!!
"कद्र होती नहीं यहां हर एक के अश्कों की
दामन की मानिंद रेत न मिलता तो ये आंसू जज्ब कहां होते.."
बहुत खूबसूरत गहन भाव और रचना -लेखनी में जादू है -जीवंत रखें!
कल के गुजरे मंजर, जो मुझे याद न होते
तो आज इस हाल में हम जिंदा कहां होते..
लाजवाब...|
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