Saturday, August 25, 2012

क्षणि‍काएं....

1.साजि‍शों का दौर
फिर गहराया है
पीठ पर नश्‍तर
कि‍सी ने चुभाया है...
उजाड़कर मेरी
ख्‍वाबों की दुनि‍या
मीठी बातों का
देखो मरहम लगाया है.....

2.इन दिनों गुलाब में
रंग तो होता है, खुश्बू नहीं होती
जैसे प्यार के कुछ बरस गुजरने के बाद
प्यार तो होता है, वो शिद्दत नहीं होती....

3.उस शख्‍स का इंतजार है अभी भी मुझे
जि‍सने न कि‍या प्‍यार कभी भी मुझे....

4.जो बाहर है तुममें
गर वो ही अंदर है
तो मानो
दुनिया एक समंदर है
और तुम
उससे निकले एक नायाब मोती......

4 comments:

अजय कुमार said...

अच्छी क्षणिकाएं , बधाई

dr.mahendrag said...

.इन दिनों गुलाब में
रंग तो होता है, खुश्बू नहीं होती
जैसे प्यार के कुछ बरस गुजरने के बाद
प्यार तो होता है, वो शिद्दत नहीं होती....
BAHUT HI SUNDAR

Onkar said...

बहुत खूब

मनोज कुमार said...

आज इस ब्लॉग की कई रचनाएं पढ़ी। लाजवाब!!