Tuesday, August 28, 2012

कहां होते....

कल के गुजरे मंजर, जो मुझे याद न होते
तो आज इस हाल में हम जिंदा कहां होते...

समंदर में ही फकत उठता चांद रात में ज्‍वार
गर दि‍ल न होता तो बताओ ये तूफां कहां होते...

कद्र होती नहीं यहां हर एक के अश्‍कों की
दामन की मानिंद रेत न मि‍लता तो ये आंसू जज्‍ब कहां होते.....

वफा मि‍लती इस जमाने में हमें भी औरों की तरह
तो आज इस कदर हम तन्‍हां कहां होते....

12 comments:

nilesh mathur said...

बहुत सुंदर...

meenakshi said...

Rashm ji, bahut..khoob likha hai.

Meenakshi Srivastava
meenugj81@gmail.com

Sunil Kumar said...

वफा मि‍लती इस जमाने में हमें भी औरों की तरह
तो आज इस कदर हम तन्‍हां कहां होते....
बहुत सुंदर क्या बात हैं

दिगम्बर नासवा said...

वाह .. सच खा है ... जो वफ़ा रहती जमाने में तो यूं तन्हा न होते .. लाजवाब ..

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया


सादर

Amit Chandra said...

behtrain prastuti.

Pallavi saxena said...

वाह क्या बात है बहुत खूब ...लाजवाब प्रस्तुति।

Unknown said...

बहुत बढ़िया...

Unknown said...

बहुत बढ़िया

राहुल said...

आपने वाकई बहुत अच्छा लिखा है!!!!!!!!

Arvind Mishra said...

"कद्र होती नहीं यहां हर एक के अश्‍कों की
दामन की मानिंद रेत न मि‍लता तो ये आंसू जज्‍ब कहां होते.."
बहुत खूबसूरत गहन भाव और रचना -लेखनी में जादू है -जीवंत रखें!

मन्टू कुमार said...

कल के गुजरे मंजर, जो मुझे याद न होते
तो आज इस हाल में हम जिंदा कहां होते..

लाजवाब...|