Monday, June 25, 2012

रूके कदम....

उस मोड़ पर
जहां ठहरकर
हम दो
वि‍परि‍त ध्रुव की तरफ
मुड़ने ही वाले थे...
एक दूसरे को
अलवि‍दा
कहने से पहले
एक बार फि‍र से
भरपूर
मगर डबडबाई आंखों से
देखना चाहा हमने
तभी
वेगवान
आंसुओं के प्रवाह ने
तोड़ दी अपनी हदें
.....बरस पड़ी
और
वि‍दा के लि‍ए
उठे दो हाथ
अचानक आबद्ध हो उठे
सारी दूरि‍यों को तज
एक-दूजे में जा सि‍मटे....

12 comments:

Dr.NISHA MAHARANA said...

waah komal ahsas bhari prastuti...dil khush ho gaya...

अजय कुमार झा said...

बहुत ही सुंदर रचना रश्मि दी \ भावपूर्ण और ठिठका देने वाली ।

M VERMA said...

निर्बाध आबद्धता मिले
बहुत खूबसूरत रचना

Alok Verma said...

बहुत बढ़िया कमेन्ट
फेसबुक पर यूट्यूब की विडियो कैसे पोस्ट करें?

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मन को प्रभावित करती सुंदर रचना,,,,,

RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,

Anamikaghatak said...

sundar wa bhawpoorna prastuti

Sunil Kumar said...

भावपूर्ण रचना आभार

कमल कुमार सिंह (नारद ) said...

बहुत सुन्दर

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

वाह! क्या ही खुबसूरत रचना...
सादर.

लोकेन्द्र सिंह said...

बेहद खूबसूरत रचना...

amrendra "amar" said...

अनुपम भाव ... बेहतरीन प्रस्‍तुति।

sheen said...

marvelous.....