उस मोड़ पर
जहां ठहरकर
हम दो
विपरित ध्रुव की तरफ
मुड़ने ही वाले थे...
एक दूसरे को
अलविदा
कहने से पहले
एक बार फिर से
भरपूर
मगर डबडबाई आंखों से
देखना चाहा हमने
तभी
वेगवान
आंसुओं के प्रवाह ने
तोड़ दी अपनी हदें
.....बरस पड़ी
और
विदा के लिए
उठे दो हाथ
अचानक आबद्ध हो उठे
सारी दूरियों को तज
एक-दूजे में जा सिमटे....
12 comments:
waah komal ahsas bhari prastuti...dil khush ho gaya...
बहुत ही सुंदर रचना रश्मि दी \ भावपूर्ण और ठिठका देने वाली ।
निर्बाध आबद्धता मिले
बहुत खूबसूरत रचना
बहुत बढ़िया कमेन्ट
फेसबुक पर यूट्यूब की विडियो कैसे पोस्ट करें?
मन को प्रभावित करती सुंदर रचना,,,,,
RECENT POST,,,,,काव्यान्जलि ...: आश्वासन,,,,,
sundar wa bhawpoorna prastuti
भावपूर्ण रचना आभार
बहुत सुन्दर
वाह! क्या ही खुबसूरत रचना...
सादर.
बेहद खूबसूरत रचना...
अनुपम भाव ... बेहतरीन प्रस्तुति।
marvelous.....
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