Sunday, February 21, 2021

शायद ... प्रेम !


- जीवन से सारे संबंध धीरे-धीरे वि‍लग क्‍यों होते जाते हैं ? 

- अलग होने पर ही नए पत्‍ते आते हैं। शायद एक दि‍न मैं भी...

- तुम पत्‍ता नहीं हो मेरे लि‍ए !

- तो क्‍या हूं ?

- थोड़ी जड़, थोड़ी मि‍ट्टी, थोड़ा धूप, थोड़ा पानी 

- कवि‍ता है ..

- न, बस आग्रह...छोड़ के मत जाना। सहन नहीं होगा। 

................। 


8 comments:

आलोक सिन्हा said...

सुन्दर विचार

आलोक सिन्हा said...

सुन्दर विचार

आलोक सिन्हा said...

बहुत सुन्दर

सुशील कुमार जोशी said...

वाह

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सार्थक अभिव्यक्ति।

Onkar said...

सुन्दर प्रस्तुति.

मन की वीणा said...

ओह झुरझुरी सी दौड़ गई रचना पढ़कर।
रोमांचक।
हृदय स्पर्शी।
गागर में सागर।

सधु चन्द्र said...

वाह!