- जीवन से सारे संबंध धीरे-धीरे विलग क्यों होते जाते हैं ?
- अलग होने पर ही नए पत्ते आते हैं। शायद एक दिन मैं भी...
- तुम पत्ता नहीं हो मेरे लिए !
- तो क्या हूं ?
- थोड़ी जड़, थोड़ी मिट्टी, थोड़ा धूप, थोड़ा पानी
- कविता है ..
- न, बस आग्रह...छोड़ के मत जाना। सहन नहीं होगा।
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10 comments:
सुन्दर विचार
सुन्दर विचार
बहुत सुन्दर
वाह
सार्थक अभिव्यक्ति।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 22 फरवरी 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-2-21) को 'धारयति इति धर्मः'- (चर्चा अंक- 3986) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
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कामिनी सिन्हा
सुन्दर प्रस्तुति.
ओह झुरझुरी सी दौड़ गई रचना पढ़कर।
रोमांचक।
हृदय स्पर्शी।
गागर में सागर।
वाह!
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