Sunday, May 27, 2018

लेह महल



घंटे भर के सफर के बाद हम लेह महल पहुँचे। एक बार फि‍र शहर हमारे आंखों के आगे था। शहर के मध्य में स्थित इस महल का निर्माण सोलहवीं शताब्दी में सिंगे नामग्याल ने करवाया था। अंदर जाने के लि‍ए टि‍कट लेना पड़ा। बच्‍चों का मन नहीं था मगर हमें देखना था लेह महल। प्रवेश द्वार लकड़ी की नक्‍काशी वाला था। ऊपर एक सि‍ंह की प्रति‍मा भी स्‍थापि‍त थी जो आक्रमण की मुद्रा में था। 





इस महल में भगवान बुद्ध के जीवन को दर्शाते चित्र देखने लायक हैं। यहां प्रदर्शित चि‍त्रोंं में पुराने महल और लद्दाखी लोग दि‍खे। मैने याद रखने के लि‍ए कुछ तस्‍वीरें उतार ली। यह महल राजा सेंगे नामग्‍याल द्वारा 17वीं सदी में बनाया गया था। यह नौमंजि‍ला महल है मि‍ट्टी और लकड़ी का बना हुआ है। यहॉं सबसे ऊपर की मंजि‍ल में शाही परि‍वार रहता था और नीचे की मंजि‍लों में रसोई घर या स्‍टोर रूम थे।  
 महल की देखरेख पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की जा रही है, परन्तु इसकी हालत अत्यंत जर्जर है। महल की इमारत ल्हासा में पोताला पैलेसजो की तिब्बत में हैकी तरह है। ऊपर झरोखा भी है और एक दुसरे से जुड़े कई कमरे भी। दूसरे तल्‍ले पर झरोखे में खड़े होने पर शहर दि‍खता है पूरा। 


ऊपर आने से पहले ही एक पूजा घर है। यहां सुबह-शाम पुजारी पूजा के लि‍ए मंदि‍र खोलते हैं। मंदि‍र के बाहर लकड़ी का काम कि‍या हुआ है। लोग जूते उतारकर दर्शन के लि‍ए अंदर जा रहे थे। कुछ कमरे ऐसे भी दि‍खे जो बाहर से ताला बंद थे। छत की बनावट थोड़ी अलग थी। एक मंजि‍ल से दूसरी मंजि‍ल घूमकर जाना पड़ता था। ऊपर-नीचे छत थे 

जब डोगरा के बलों ने ,19 वीं सदी में लद्दाख पर कब्ज़ा कर लिया थातब  शाही परिवार को महल छोड़ना पड़ा था और उन्हें स्टोक पैलेस जाना पड़ा था। हाँ से भी शहर और पहाड़ की खूबसूरती देखने लायक है। यहाँ एक आर्ट गैलरी भी है जहाँ आप पुराने लद्दाख की झलक पा सकते हैं।



 मैं एकदम ऊपर नहीं जा पाई, क्‍योंकि‍ अभि‍रूप थककर रोने लगेतो मुझे रुकना पड़ा। बाकी लोग ऊपर तक घूमकर आ गए। हम बाहर नि‍कले तो पास ही एक मठ और नजर आयाजो ऊँचाई पर था। कुछ लड़कि‍याँ सीधी चढ़ाई कर जा रही थी। हमारा जाना तो संभव था ही नहीं ,सो वापस होटल की तरफ चल पड़े। 



होटल पहुँचकर अभि‍रूप ने कहीं भी जाने से इंकार कर दि‍या। अभी शाम ढली नहीं थी। हमें कुछ और जगह देख लेना चाहि‍ए ,ऐसा वि‍चार कर नि‍कल पड़े। बच्‍चे की जि‍म्‍मेदारी होटल के मैनेजर को सौंप दी। एक बात जरूर है। लेह में लोग आपको सीधे और ईमानदार मि‍लेंगे। वहाँ चोरी छि‍नतई जैसी भी कोई बात नहींन ही बड़े शहरों के  लोगों की तरह उनका व्‍यवहार है। हम नि‍श्‍चिंत होकर बच्‍चे को होटल में छोड़कर इसलि‍ए नि‍कल पाए;क्‍योंकि‍ हमें भरोसा था वे लोग बीच-बीच में जाकर उसकी देखभाल अवश्‍य करेंगे। ऐसा हुआ भीवापस आने पर बच्‍चे के बताया अंकल आकर देख कर जाते थे और पूछकर भी कि‍ कोई जरूरत तो नहीं। 




क्रमश: - 9 

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