जहाज से उतरते ही पाया कि यह क्षेत्र सैनिक छावनी है। छोटा सा एयरपोर्ट जिसका नाम है ' कुशेक बकुला रिनपोछे टर्मिनल, लेह'। लेह हवाई अड्डा मुख्यतः सेना के लिए बनाया गया हवाई अड्डा है, जहाँ दिल्ली, चंडीगढ़, जम्मू और श्रीनगर से यात्री तथा मालवाहक विमान आवाजाही किया करते हैं। हमने अपने लिए गाड़ी पहले ही बुक कर ली थी, इसलिए ड्राइवर जिम्मी हमारे नाम की तख्ती लिये खड़ा था। वह लेह का ही निवासी है। मिलते ही 'जुले' कहकर उसने अभिवादन किया। यह यहां का नमस्कार है। जिम्मी हमें शहर के बीच एक होटल में ले चला। रास्ते में हमें कुछ महिलाएं मिलीं। उन सबके हाथों में फूल था। उन्होंने घेरदार गाउन जैसा वस्त्र पहना था। इसे स्थानीय बोली में गुंचा कहते हैं। जिम्मी ने कहा कि बहुत छोटा सा शहर है लेह, पर आपको अच्छा लगेगा। बमुश्किल हमें 20 से 25 मिनट लगे होटल पहुंचने में।
दसवीं शताब्दी के दौरान लद्दाख तिब्बती राजाओं के उत्तराधिकारियों के शासन में था। 17वीं शताब्दी में राजा 'सेनगी नामग्याल' के शासनकाल के दौरान हिमालयन साम्राज्य अपने चरम पर था। 1834 में डोगरा राजा गुलाब सिंह के जरनल जोरावर सिंह ने लद्दाख पर आक्रमण किया और उसे जीत लिया। 1842 में एक विद्रोह हुआ जिसे कुचल दिया गया और लद्दाख को जम्मू कश्मीर के डोगरा राज्य में विलीन कर लिया गया। इस तरह 18वीं शताब्दी में लद्दाख जम्मू और कश्मीर क्षेत्र में शामिल हुआ और अब यह जम्मू और कश्मीर का एक प्रमुख राज्य है। लद्दाख, विश्व के दो प्रमुख पर्वत शृंखलाओं, काराकोरम और हिमालय के बीच, समुद्र की सतह से 3,500 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है। इसके अतिरिक्त, जास्कर और लद्दाख की समानांतर पर्वतमालाएँ, लद्दाख की घाटी को चारों ओर से घेरती हैं। वैसे लद्दाख का लेह क्षेत्र 1974 के बाद से विदेशी पर्यटकों के लिए खुला।
गाड़ी में बैठते ही सबसे पहले स्वच्छ नीले आकाश और उस पर छितरे सफेद बादलों पर नजर पड़ी। गजब का खूबसूरत। भूरी चट्टानें या छोटी पहाड़ियाँ भी रास्ते में दिखी हमें और कई हरे पेड़। वहाँ पॉपलर के पेड़ खूब होते हैं। मकानों के बाहर लकड़ी की नक्काशी की हुई मिली, जो पॉपलर पेड़ की लकड़ी से बने हुए थे।
हम होटल पहुँचते ही सबसे पहले यह पता करने लगे कि किस दिन किधर जाना सबसे अच्छा होगा, जिससे समय का सदुपयोग किया जा सके। जिम्मी ने कहा कि हमें पैंगोग और नुबरा के लिए पहले ही परमिट बनवाना होगा, वरना जिस दिन जाएँगे बेवजह वक्त लग जाएगा। हमने सूप पीते हुए सारा कार्यक्रम तय किया और जिम्मी हमसे आधार कार्ड की कॉपी और पैसे लेकर परमिट बनवाने चला गया। होटल बहुत खूबसूरत था। पॉपलर के ऊँचे पेड़ के पीछे भूरी-भूरी पहाड़ियाँ और उसके पीछे सफेद रंग से ब्रश फिराई हुई पहाड़ियाँ। हम कुछ देर आराम करने लगे। बड़ी अजीब सी बात हुई कि कोई थकान नहीं थी, मगर सब के सब सो गए। दोपहर बाद नींद खुली तो खाना खाने के बाद तैयार होकर निकल पड़े शांति स्तूप के लिए।
क्रमश.......3
क्रमश.......3
9 comments:
चित्र बहुत खूबसूरत...।
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17.05.18 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2973 में दिया जाएगा
धन्यवाद
यात्रा लेख काफी मजेदार है, मन कर रहा है की जल्दी जल्दी सम्पूर्ण यात्रा पढ़ ली जाए। इसलिए पोस्ट बहुत छोटी लगी। आगामी पोस्ट का बेसब्री से इंतजार रहेगा।
धन्यवाद वाणी जी। सुस्वागतम्
आभार
धन्यवाद सचिन जी। लगातार पोस्ट कर पूरा कर रही हूँ।
धन्यवाद, आभार
मुझे यात्रासंस्मरण पढ़ना बहुत पसंद है , आओ अच्छा लिख रही हैं, कौतूहल बना हुआ है अब आगे कंहा जायेंगे, क्या देखेंगे.....आपकी नज़रों से लेह देखना अच्छा लग रहा है... अगली कड़ी की प्रतीक्षा है
सादर
लद्दाख का अपना ही मजा है ...
सभी चित्र एक से बढ़ कर एक हैं ....
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