Thursday, December 19, 2013

अनुछुई सी प्रीत.....


हां
स्‍वीकारती हूं मैं
कि जीवन
अधूरा था बि‍न तुम्‍हारे 
अधूरा ही रहेगा
इसलि‍ए

इस स्‍वीकारोक्‍ति में
झि‍झक नहीं लेशमात्र भी
कि मेरे क्‍वांरे मन के
सपनों में आने वाले
तुम ही थे
और उस क्षण
जब सांसे छोड़ेंगी
इस देह का साथ
अर्पित कर जाउंगी
अनुछुई सी प्रीत तुम्‍हें
आज
कहती हूं तुमसे
कि तुम ही मेरे
पहले प्‍यार थे
और
अंति‍म प्‍यार भी
तुम ही रहोगे...बस तुम ही....


तस्‍वीर...साभार गूगल

5 comments:

मेरा मन पंछी सा said...

bahut sundar,pyari rachana...
:-)

dr.mahendrag said...

कितनी प्रीत ,कितना समर्पण,जीवन उनका ही हो कर रह गया.
बहुत सुन्दर भावना प्रधान प्रस्तुति रश्मिजी.

Asha Lata Saxena said...


पहले प्‍यार थे
और
अंति‍म प्‍यार भी
तुम ही रहोगे...बस तुम ही....


बढ़िया पंक्तिया |उम्दा रचना |
आशा

कालीपद "प्रसाद" said...

बहुत सुन्दर प्रेम स्वीकृति !
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )

विभूति" said...

कोमल भावो की
बेहतरीन........