हां
स्वीकारती हूं मैं
कि जीवन
अधूरा था बिन तुम्हारे
अधूरा ही रहेगा
इसलिए
इस स्वीकारोक्ति में
झिझक नहीं लेशमात्र भी
कि मेरे क्वांरे मन के
सपनों में आने वाले
तुम ही थे
और उस क्षण
जब सांसे छोड़ेंगी
इस देह का साथ
अर्पित कर जाउंगी
अनुछुई सी प्रीत तुम्हें
आज
कहती हूं तुमसे
कि तुम ही मेरे
पहले प्यार थे
और
अंतिम प्यार भी
तुम ही रहोगे...बस तुम ही....
तस्वीर...साभार गूगल
7 comments:
bahut sundar,pyari rachana...
:-)
कितनी प्रीत ,कितना समर्पण,जीवन उनका ही हो कर रह गया.
बहुत सुन्दर भावना प्रधान प्रस्तुति रश्मिजी.
बहुत सुन्दर .
नई पोस्ट : मृत्यु के बाद ?
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (21-12-2013) "हर टुकड़े में चांद" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1468 पर होगी.
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
सादर...!
पहले प्यार थे
और
अंतिम प्यार भी
तुम ही रहोगे...बस तुम ही....
बढ़िया पंक्तिया |उम्दा रचना |
आशा
बहुत सुन्दर प्रेम स्वीकृति !
नई पोस्ट मेरे सपनों का रामराज्य ( भाग २ )
कोमल भावो की
बेहतरीन........
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