रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...
भावातिरेक का शिखर मौन ही होता है .न जुबां को दिखाई देता है ,न निगाहों से बात होती है .बढ़िया भाव रचना .भाव क्षणिका .ram ram bhaiमुखपृष्ठसोमवार, 11 फरवरी 2013अतिथि कविता :सेकुलर है हिंसक मकरी -डॉ वागीशhttp://veerubhai1947.blogspot.in/
sunder
sahi bat ......kuch bolne ke liye shabdoon ki jarurat kahaan ?
bahut pyaari...
प्रेम में शब्द नहीं भाव काम आते हैं ... सही कहा ...
प्रेम-भावों से पूर्ण सुंदर रचना
प्रेमावेग से थरथराती जुबां लफ्ज चुन नहीं पातीशब्द बुन नहीं पातीनिकलते हैं केवल कुछ अस्फुट से स्वरक्या हुआजो लब खामोश रहेदिल ने तो कह दिया नजानां, तुम्हें भी मुझसे प्यार है...पूरी कविता ही चू रही हो जैसे मधुसिक्त रस से
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भावातिरेक का शिखर मौन ही होता है .न जुबां को दिखाई देता है ,न निगाहों से बात
होती है .बढ़िया भाव रचना .भाव क्षणिका .
ram ram bhai
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सोमवार, 11 फरवरी 2013
अतिथि कविता :सेकुलर है हिंसक मकरी -डॉ वागीश
http://veerubhai1947.blogspot.in/
sunder
sahi bat ......kuch bolne ke liye shabdoon ki jarurat kahaan ?
bahut pyaari...
प्रेम में शब्द नहीं भाव काम आते हैं ... सही कहा ...
प्रेम-भावों से पूर्ण सुंदर रचना
प्रेमावेग से थरथराती जुबां
लफ्ज चुन नहीं पाती
शब्द बुन नहीं पाती
निकलते हैं केवल कुछ अस्फुट से स्वर
क्या हुआ
जो लब खामोश रहे
दिल ने तो कह दिया न
जानां, तुम्हें भी मुझसे प्यार है...पूरी कविता ही चू रही हो जैसे मधुसिक्त रस से
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