Tuesday, February 19, 2013
शाम की उदासी....
मेरे दिल के साथ-साथ
बुझने लगी है शाम भी
कि दोपहर से
उदासियों ने जकड़ रखा है मुझे
एक फरेब है कि
वो है तो जिंदगी है
कभी-कभी ये भ्रम भी
टूटना चाहता है
कि पूछना चाहता है
उंगलियों में गिन ली उम्र
आती नहीं एक बार भी
हमारी याद
न रहने दो
होने का अहसास
यूं भी हर किसी के लिए
होता नहीं कोई खास
क्या होगा
न होगा कोई तमाशा
बस एक
दिल ही तो टूटेगा
कह दो सच
कि(...
हम हैं दरिया के आर-पार
न जिओ न मरो
लेकर मेरा नाम
तुम नहीं मेरे दिल के किसी कोने में
कि सफ़ेद फा़ख्ता
किसी और के बने घोसले में
कभी रहने नहीं आती...
तस्वीर--मेरे गांव ओरमांझी के पास रूक्का की एक शाम
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9 comments:
उत्कृष्ट प्रस्तुति |
आभार ||
उदास यादें ओर लाजवाब मंज़र ...
पूरी कविता गहरा एहसास बन के रह गई ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
Recent Post दिन हौले-हौले ढलता है,
उदास आँखें .....
उदास शाम और उदास लमहें.....
गहन अनुभूती ...
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....
बहुत ही उत्कृष्ट प्रस्तुति.आभार.
बहुत उम्दा प्रस्तुति ...
dhadkan ki ye pati hai ...badhiya.
तुम नहीं मेरे दिल के किसी कोने में
कि सफ़ेद फा़ख्ता
किसी और के बने घोसले में
कभी रहने नहीं आती...
bahut hi sundar
तुम नहीं मेरे दिल के किसी कोने में
कि सफ़ेद फा़ख्ता
किसी और के बने घोसले में
कभी रहने नहीं आती..
.उदासियाँ जब घेर लेतीं हैं ,टी इन्सान न जाने क्या क्या सोच जाता है,कोई सीमा नहीं होती.बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति.
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