Wednesday, February 13, 2013

चूमकर कह दूं आज ......



दि‍ल की दराज में
बंद है एक वादा
कि आंखों से कहने वाली बातें
शब्‍दों के फेर में न पड़ जाए

दरअसल यह
इक ख्‍याल ही है
कि हवा में लि‍पटी नमी
उन होंठों का स्‍पर्श है
जो उस जादूगर ने
मेरी याद में
एक हरि‍याये पत्‍ते पर
धरा था आज सुबह....

तुमसे बि‍न बताए
शहर से तेरे चली आई है
मेरे घर तक
बासंती हवा

प्रेम में आड़ोलि‍त मन
चाहता है
चूमकर कान की लौ
कह दूं आज चुपके से
कि अब से
हर दर्द तेरा बस मेरा हुआ.....

तस्‍वीर--साभार गूगल

13 comments:

अनुराग अन्वेषी said...

यह तुम्हारे भीतर की पूर्णिमा है जो बांट लेना चाहती है दूसरों की अमावस्या - यह बात इस कविता में शिद्दत के साथ दिख रही है।

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

और कुछ भी उसे कह सकते हो यारो,लेकिन दर्द जिस दिल में न हो,उसे दिल न कहो,,,

RECENT POST... नवगीत,

संजय भास्‍कर said...

बेहद ख़ूबसूरत और उम्दा

संजय भास्‍कर said...

शब्दों की मुस्कुराहट पर आने वाले दिनों में

Unknown said...

sundartam bhavo se otprot rachana प्रेम में आड़ोलि‍त मन
चाहता है
चूमकर कान की लौ
कह दूं आज चुपके से
कि अब से
हर दर्द तेरा बस मेरा हुआ.....

Dr.NISHA MAHARANA said...

कह दूं आज चुपके से
कि अब से
हर दर्द तेरा बस मेरा हुआ.....
bahut accha ...aisee chah rakhna badi bat hai.....

दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट 14 - 02- 2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें ।

रविकर said...

उत्कृष्ट प्रस्तुति-
आभार आदरेया |

Manav Mehta 'मन' said...

bahut badhiya ...

Asha Lata Saxena said...

ह्रदय को छूती प्रस्तुति |भावपूर्ण अभिव्यक्ति |
आशा

मेरा मन पंछी सा said...

very nice :-)

सदा said...

वाह ... बहुत खूबसूरत अहसास

डॉ एल के शर्मा said...

प्रेम में आड़ोलि‍त मन
चाहता है
चूमकर कान की लौ
कह दूं आज चुपके से
कि अब से
हर दर्द तेरा बस मेरा हुआ.....
सुंदर एहसास !!