रूप-अरूप

रूप का तिलिस्म जब अरूप का सामना करे, तो बेचैनियां बढ़ जाती हैं...

Wednesday, September 18, 2024

पुरानी तस्वीर...

›
  कल से लगातार बारिश की झड़ी लगी है। कभी सावन के गाने याद आ रहे तो कभी बचपन की बरसात का एहसास हो रहा है। तब सावन - भादो ऐसे ही भीगा और मन खि...
3 comments:
Friday, August 23, 2024

हमारे साझे का मौसम

›
उस बारिश से इस बारिश तक  न जाने कितनी बरसातें गुजर गई यह हमारे साझे का मौसम है  हवा ,  बादल ,  मोगरे ,  रातरानी सब तो हैं , टूटकर बरसता है आ...
2 comments:
Saturday, August 10, 2024

बारि‍श का इंतजार...

›
कोई मुझसे पूछे कि क्यों होता है बारिश का इंतजार तो मैं एक नहीं, सैकड़ों कारण गिनवा सकती हूं। अव्वल तो मुझे  बारिश की बूंदों को देखना, बारिश ...
4 comments:
Wednesday, August 7, 2024

बरसती बूंदों का राग

›
  केले के उन हरे सघन पत्तों पर  अनवरत बरसती बूंदों का राग है हर बरस इस मौसम में बस एक ही बात सोचती हूं क्या कोई होगा जो मेरी तरह यूं ही बारि...
3 comments:
Saturday, August 3, 2024

बारिश की आवाजें

›
  रात के अंधेरे में हो रही बारिश की आवाजें हैं! अभी एक और आवाज की स्मृति शामिल है इसमें  दूर फैले पहाड़ों पर होती हुई बारिश देखने  दो और आँख...
5 comments:
Thursday, July 11, 2024

वाणभट्ट की आत्मकथा बनाम गाँव की व्यथा

›
अपनी  छोटी सी लाइब्रेरी में एक किताब ढूंढ़ रही थी कि अचानक नजर पड़ी एक पीली सी , फटी जिल्दवाली किताब पर। जैसे कितने दिन से बीमार पड़ी हो और ...
8 comments:
Tuesday, July 2, 2024

पिता की चिंता ...

›
हममें बहुत बात नहीं होती थी उन दिनों जब मैं बड़ी होने लगी दूरी और बढ़ने लगी हमारे दरमियां जब मां मेरे सामने उनकी जुबान बोलने लगी थीं चटख रंग...
7 comments:
Wednesday, June 26, 2024

हो रहा है ज़िक्र पैहम आम का

›
आम...नहीं - नहीं, आम से पहले मुझे आम का बगीचा याद आता है, पत्तों से छनकर आने वाली धूप याद आती है और पीठ पर उगी घमौरियों की काल्पनिक खुजलाहट ...
2 comments:
Thursday, May 30, 2024

जलते हुए पेड़

›
कल रात घुमावदार घाटी पार करते हुए,नीचे एक पुराने लंबे वृक्ष को जलते देखना, कितना विचलित कर देने वाला अनुभव था! जैसे कोई दैत्य अट्टहास करता ह...
3 comments:
Friday, May 24, 2024

अकेली मां

›
मां अक्सर बताया करती थीं युवा दिनों में जब जाती थीं पिता के साथ बाजार लंबे डग भरते हुए हमेशा पिता चार हाथ आगे निकल जाते थे साथ चलने के लिए छ...
2 comments:
›
Home
View web version
My photo
रश्मि शर्मा
एक अनचीन्‍हा खालीपन, जि‍से भरने की कोशि‍श जब भी की मैंने...कि‍सी कवि‍ता ने आकार लि‍या..खुद की तलाश जारी है..जि‍स दि‍न खुद से मि‍लूंगी..मुकम्‍मल हो जाउंगी...
View my complete profile
Powered by Blogger.