उस बारिश से इस बारिश तक
न जाने कितनी बरसातें गुजर गई
यह हमारे साझे का मौसम है
हवा, बादल, मोगरे, रातरानी
सब तो हैं,
टूटकर बरसता है आसमान भी
पर भीगता नहीं मन
हवाओं में घुली खुशबू नहीं आती इन दिनों मुझ तक
तुम थे तो कितनी सुंदर लगती थी दुनिया
बारिश बजती थी कानों में
संगीत की तरह
और पहाड़ों से बादलों को लिपटते देख
नहीं थकती थीं आंखें....
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 11 सितंबर 2024 को साझा की गयी है....... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
यादों के उपवन मन में खिलते रहते हैं
ReplyDeleteकानों में रिमझिम के सुर बजते रहते हैं