Wednesday, August 7, 2024

बरसती बूंदों का राग

 


केले के उन हरे सघन पत्तों पर 

अनवरत बरसती बूंदों का राग है

हर बरस इस मौसम में बस एक ही बात सोचती हूं

क्या कोई होगा जो मेरी तरह यूं ही

बारिश को महसूस करता होगा...


क्या उसके अंदर भी 

जंगल में बारिश देखने की चाह उगती होगी

क्या मेरी तरह वो भी छत पर भीगता होगा


कितने तो ख्याल हैं 

बारिश से बदलती धरा के अनगिनत रंग और

माटी से उठती सोंधी गंध है 


ये कैसी अनजानी सी पीड़ा है

कि पहाड़ पर बारिश से बजती टीन की छत भी जैसे

किसी अनदेखे को पुकारती लगती है

मेरे लिए कोई है क्या इस दुनिया में

जो यूं बारिश को आत्मा से महसूस करता होगा...

3 comments:

  1. वाह! एक कवि मन ऐसा ही होता है। यह 'और' जानने की इच्छा, मन को सदा गति में रखता है। सच कहूँ तो बेचैन रहता है। सबकुछ जानने का मन करता है। आदि। कवि...

    ReplyDelete

अगर आपने अपनी ओर से प्रतिक्रिया पब्लिश कर दी है तो थोड़ा इंतज़ार करें। आपकी प्रतिक्रिया इस ब्लॉग पर ज़रूर देखने को मिलेगी।