Tuesday, March 9, 2021

'' मैं ''


जब से यह फोटो क्‍लि‍क हुआ है, जाने क्‍यों लगता है इसके पीछे कोई कहानी छि‍पी है, जि‍से महसूस तो कर पा रही हूं..मगर शब्‍द नहीं दे पा रही। 

क्‍या मैं कि‍सी बीती कहानी का हि‍स्‍सा हूं या कोई कहानी आगे लि‍खी जाएगी जि‍सका मुख्‍य पात्र बेंच और उस पर बैठी अकेली '' मैं '' हाेऊंगी। वैसै ऐसी सैकड़ों दोपहरें बीत चुकी है इस जि‍ंदगी में। दोपहर का सन्‍नाटा, तेज धूप की थोड़ी सी छांंव में खुद को छुपाने की कोशि‍श। 

क्‍या कुछ नहीं गुजरा है जीवन में।  

14 comments:

कविता रावत said...

हर किसी में एक कहानी नहीं कई कहानियां छुपी रहती है

बहुत सही

Rohitas Ghorela said...

जीवन सीधी रेखा तो नहीं।
हो गए हैं हम तो कुछ तो होकर रहेगा।
आइयेगा नई रचना

Kamini Sinha said...

सादर नमस्कार ,

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (10-3-21) को "नई गंगा बहाना चाहता हूँ" (चर्चा अंक- 4,001) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी महिमा आप ही जानें।

आलोक सिन्हा said...

सुन्दर

Sagar said...

Very Nice your all post. i love so many & more thoughts i read your post its very good post and images . thank you for sharing

Onkar said...

बहुत सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

ज़रूर लिखी जा सकती है कहानी । लिखिए ।

Sudha Devrani said...

हर जीवन अपनेआप में एक अनेक कहानी समेटे हुए है....
बहुत सुंदर।

प्रतिभा सक्सेना said...

आप का ही तो एक रूप है यह भी - अब चिख डालिये कहानी भी.

Onkar said...

जीवन चलने का नाम

नूपुरं noopuram said...

अगले मोड़ पर कहानी से मिलने का इंतज़ार रहेगा.
नमस्ते.

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

एक अनगढ़ा अनुभव व अव्यक्त अनुभूति ....
कचोटती चंद साँसों को, इन शब्दों में, मैं अवश्य पढ़ सकता हूँ आदरणीया रश्मि जी।

शिवम कुमार पाण्डेय said...

बहुत सुंदर।