Saturday, August 15, 2020

उनके नाम का अंति‍म भोजन....



सखुआ के पत्तल में  
निकाला गया भोजन
सब उन्हीं की पसंद का था 

बैंगन-बड़ी की सब्ज़ी 
कोहड़ा, भिंडी, पालक समेत
कई तरह के व्यंजन परोसे गए 

सज गया पत्तल तो माँ ने कहा
आम का अचार तो दिया ही नहीं
कितना पसंद है उन्हें !

कट गया कलेजा
जब कहा पीछे से किसी ने 
तस्वीर के आगे अर्पित करो
उनके नाम का अंतिम भोजन...

जीवन भर हमें 
मनचाहा खिलाने और
जीने देने वाले पिता के लिए
अब थाली में खाना नहीं परसेगा कोई...।

7 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

नमन। धैर्य रखें।

Onkar said...

मर्मस्पर्शी रचना

विश्वमोहन said...

मर्म को भिगो गयी ये पंक्तियाँ! नमन!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर और सारगर्भित।

Ravindra Singh Yadav said...

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार (17अगस्त 2020) को 'खामोशी की जुबान गंभीर होती है' (चर्चा अंक-3796) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
--
-रवीन्द्र सिंह यादव

Kamini Sinha said...

कट गया कलेजा
जब कहा पीछे से किसी ने
तस्वीर के आगे अर्पित करो
उनके नाम का अंतिम भोजन...
"उनके नाम का अंतिम भोजन.." हाँ,ये वाक्य कलेजा चिर जाता है,परमात्मा ही हमें शक्ति देता है अपने से बिछोह को सहने की वरना ये दर्द सहना आसान नहीं होता,भगवान आपके पिता के आत्मा को शांति प्रदान करें

Alaknanda Singh said...

आज मुझे अपने प‍िता याद आ गए...कट गया कलेजा
जब कहा पीछे से किसी ने
तस्वीर के आगे अर्पित करो
उनके नाम का अंतिम भोजन...ये जो अंंंंत‍िम शब्द है ना यही तो जानलेवा है ...बहुत खूब हमारी अनुभुत‍ियों को फ‍िर से सतह पर लाने के ल‍िए रश्म‍ि जी ..सादर