बड़ी खूबसूरत अदाएँ तुम्हारी
बदन पर चमकती शुआएँ तुम्हारी!
बदन पर चमकती शुआएँ तुम्हारी!
मेरे तन पे लिपटा दुपट्टा हरा ये
दुपट्टे में उलझी ,दुआएँ तुम्हारी!
दुपट्टे में उलझी ,दुआएँ तुम्हारी!
मैं तन्हा खड़ी हूँ, किसी ने पुकारा
यूँ हौले से आती सदाएँ तुम्हारी!
यूँ हौले से आती सदाएँ तुम्हारी!
हवा आई तेरा ही पैगाम लेकर
मैं आई हूँ लेने बलाएँ तुम्हारी!
मैं आई हूँ लेने बलाएँ तुम्हारी!
रोशन है तन-मन,मेरे संग संग हैं
तुम्हारी मुहब्बत,वफ़ाएँ तुम्हारी!
तुम्हारी मुहब्बत,वफ़ाएँ तुम्हारी!
4 comments:
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-12-2019) को "आओ बोयें कल के लिये आज कुछ इतिहास" (चर्चा अंक-3553) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर रचना है आपकी।
हवा आई तेरा ही पैगाम लेकर
मैं आई हूँ लेने बलाएँ तुम्हारी!... बहुत खूबसूरत प्रेम के नाम एक नज़्म
सुंदर रचना
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