दर्द झेलना बहुत मुश्किल होता है..खासकर तब, जब यह दर्द दिल को घायल करने के बाद मन से तन में उतरने लगता है.....मन और तन की तकलीफ साथ-साथ तंग करती है तो समझ नहीं आता किसे पहले देखूं....किसे शांत करूं.;क्या इलाज करूं....
बहुत प्यास लगती है इन दिनों...जैसे पानी बेअसर हो .....तुम्हारे प्यार की तरह। जागती रातों में हाथों में गिलास लिए सोचती हूं ...कुछ चीजें हमारे लिए इतनी जरूरी क्यों हो जाती है...निर्भरता बहुत बुरी शै है.....किसी पर भी हो... ये प्यास बुझती ही नहीं..
नींद की गोलियां भी बेअसर है इन दिनों....अक्सर रातों को नींद खुल जाती है। ऐसे में आवाज की तलब होती है...इस स्थित को टालने की कोशिश करती हूं....जब बर्दाश्त से बाहर होती है तलब और नींद की बेवफाई से बेजार होती हूं तो ले लेती हूं सहारा.....
कुछ बातें...कुछ आवाजें संभालकर रखी थी कभी...आज वो काम आती है बहुत....सिराहने गुंजती है तुम्हारी आवाज .....लगता है कोई मीठी थपकियां दे रहा है ...आओ मेरे पास... कहता है कोई....धीरे-धीरे नींद की दरिया में डूबती जाती हूं....
बहुत कठिन है यह संकल्प... यह लेना नहीं चाहती थी..मगर कई बार दर्द का इलाज दर्द से ही होता है.....तन अवश और मन लहुलुहान...मगर जीना तो है न.....
जी रही हूं तुम बिन......
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31.01.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3233 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बेहद हृदयस्पर्शी👌👌
ReplyDeleteबहुत ख़ूब
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