Tuesday, October 16, 2018

ओह अक्तूबर !


कितनी यादें लेकर आते हो साथ...मन तोला-माशा होता है। वो बिस्तर पर चाँदनी का सोना...
हरसिंगार का ...खिलना-महकना-गिरना
समेटना हथेलियों में तुम्हारी याद की तरह हरसिंगार और ....
पांच सुरों का राग कोई गाता है दूर..मालकौंस
मन को अतीत में खींच ले ही जाता है, कितना भी रोके कोई..
ओह अक्तूबर ....तुम आए फिर....आओ