बेटियों ने बेटियों को बचाना चाहा
अपने जैसी मासूमों को
बताना चाहा, कि समझो
तुम कोई सामान नहीं
कि तस्करी की जाए तुम्हारी
और एक दिन
लुट-पिट कर, आबरू और
बरसों की कमाई गवाँ
ख़ाली हाथ लौट आओ
उसी गाँव में
जहाँ कोई भैया, दादा या दीदी
फिर फुसलाकर बेच दे
पाँच बोरी अनाज की क़ीमत में
एक जीवित लड़की
ऐसी अच्छी बातें समझाने वाली
लड़कियों को
बहुत अच्छे से समझा दिया गया
कि मुँह खोलने की सज़ा
बलात्कार से बेहतर कुछ नहीं
कि
औरत होना जुर्म है
और जागरूकता उससे भी बड़ा दोष
विरोध का है इनके पास
बस एक ही एक तरीक़ा
कि जिस्म ऐसे नोंचो
कि पशुओं को भी शर्म आ जाए
लड़कियों को
बहुत अच्छे से समझा दिया गया
कि मुँह खोलने की सज़ा
बलात्कार से बेहतर कुछ नहीं
कि
औरत होना जुर्म है
और जागरूकता उससे भी बड़ा दोष
विरोध का है इनके पास
बस एक ही एक तरीक़ा
कि जिस्म ऐसे नोंचो
कि पशुओं को भी शर्म आ जाए
फिर सभ्यता रोयी है
मूल्यों पर सवाल खड़े हो गए
इस बार
कोई अकेली बेचारी नहीं है
जो रात सिनेमा देखती और छोटे कपड़े पहन
उकसाती थी बेचारे मर्दों को
ना थे लूटने वाले हाथ
अजनबी किसी के
भीड़ थी, साक्षी भी थे अपने ही
पास-पड़ोसी
जिन्होंने ना कुकृत्यों को
होने से रोका ना बाद में टोका
मूल्यों पर सवाल खड़े हो गए
इस बार
कोई अकेली बेचारी नहीं है
जो रात सिनेमा देखती और छोटे कपड़े पहन
उकसाती थी बेचारे मर्दों को
ना थे लूटने वाले हाथ
अजनबी किसी के
भीड़ थी, साक्षी भी थे अपने ही
पास-पड़ोसी
जिन्होंने ना कुकृत्यों को
होने से रोका ना बाद में टोका
कोई बता सकता है क्या
कि कौन हैं ये लोग
जो समानांतर सत्ता बनाना चाहते हैं
कौन है ये अपने
जो बहिन-बेटी की इज्जत तार-तार करते हैं
कौन है जो
बेटी बेचने से रोकने वाली बेटियों को ही
रौंदते हैं
कौन है जो धर्म की आड़ में
बर्बरता की सभी हदें पार कर भी चैन से जीते हैं?
कि कौन हैं ये लोग
जो समानांतर सत्ता बनाना चाहते हैं
कौन है ये अपने
जो बहिन-बेटी की इज्जत तार-तार करते हैं
कौन है जो
बेटी बेचने से रोकने वाली बेटियों को ही
रौंदते हैं
कौन है जो धर्म की आड़ में
बर्बरता की सभी हदें पार कर भी चैन से जीते हैं?
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