राँची से दिल्ली, दिल्ली से लेह। जुलाई माह हमारे घूमने के हिसाब से सही नहीं क्योंकि इस वक्त बच्चों के स्कूल खुले होते हैं। मगर कई बरसों से,बल्कि बचपन में जब से पढ़ा था लद्दाख के बारे में, एक बार जरूर जाना है, ऐसी इच्छा थी, और यही वक्त सही था जब बर्फ ज्यादा नहीं पड़ते हों,ताकि लद्दाख की वास्तविक सुंदरता हम जी भर कर निहार सके।
अनछुआ सौंदर्य है लेह-लद्दाख का। एक ऐसी जगह जहाँ प्रकृति ने कदम-कदम पर इतना सौंदर्य बिखेरा है कि आप अभिभूत होकर देखते रह जाएँगे। वैसे तो लेह जाने के लिए मई के अंतिम सप्ताह से सितंबर तक का मौसम अच्छा माना है, मगर बर्फीला सौंदर्य देखने के इच्छुक लोग सर्दियों में भी जाना पसंद करते हैं। लद्दाख की संस्कृति और धार्मिक, ऐतिहासिक विरासत इसे पर्यटकों के आकर्षण का केद्र बनाता है। समुद्र तल से करीब 10,000 किमी की ऊँचाई पर पहुँचकर वहाँ का जो सुंदर अनुभव मिलेगा, वो आप जीवनपर्यन्त कभी नहीं भूल सकते।
माना जाता है कि लद्दाख किसी बड़ी झील के डूब का हिस्सा है जो कालांतर में भैगोलिक परिवर्तन के कारण लद्दाख की घाटी बन गया। लद्दाख का शाब्दिक अर्थ है 'दर्रों की जमीन'। जम्मू-कश्मीर में 14 जिले हैं। छह जम्मू, छह कश्मीर और दो लद्दाख- (कारगिल और लद्दाख) में। लद्दाख सामरिक दृष्टि से देश के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यहाँ तीन देशों, भारत, चीन और पाकिस्तान की सीमाओं का संगम होता है। 1949 में ही यहाँ हवाई पट्टी का निर्माण हो गया था।
अब सवाल है कि लेह कैसे पहुँचा जाए। यदि आप वायुमार्ग से जा रहे हैं तो जम्मू, चंडीगढ़, दिल्ली, श्रीनगर से लेह के लिए इंडियन एयरलाइंस की सीधी उड़ानें हैं। लेह शहर में आपको टैक्सी, जीपें या बड़ी गाड़ियाँ किराए पर लेनी पड़ेंगी। ये स्थानीय ट्रांसपोर्ट तथा बाहरी क्षेत्रों में जाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं। अगर आप रेलमार्ग से जाना चाहते हैं तो सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन जम्मू है, जहाँ से लेह की दूरी मात्र 690 किमी है। जम्मू रेलवे स्टेशन देश के प्रत्येक भाग से रेल द्वारा जुड़ा हुआ है। यहाँ से बस, टैक्सी व अन्य साधनों से आपको आगे की यात्रा पूरी करनी पड़ेगी। वहीं आप अगर सड़क मार्ग से लेह तक पहुँचना चाहते हैं तो इसके लिए जम्मू-श्रीनगर-लेह राष्ट्रीय राजमार्ग बना है। श्रीनगर से लेह 434 किमी,कारगिल 230 किमी तथा जम्मू 690 किमी तथा मनाली से 500 किमी की दूरी पर स्थित है।
सड़क मार्ग से जाने वाले या मोटरसाइकिल से यात्रा करने वाले जुलाई से सितबंर तक का मौसम लेह जाने के लिए सबसे अच्छा मानते हैं। दरअसल सदिर्यों में लेह जाने का एकमात्र साधन हवाई जहाज ही है। मगर जुलाई से सितंबर के बीच आप सड़क यात्रा कर सकते हैं। दोनों ही रास्तों पर दुनिया के कुछ सबसे ऊँचे दर्रे पड़ते हैं। मई से पहले और सितंबर के बाद यहाँ भारी बर्फबारी होती है जिस कारण रास्ता बंद हो जाता है। मगर सड़क मार्ग की खूबसूरती बेमिसाल है।
जब हमने लेह के लिए दिल्ली एयरपोर्ट से उड़ान भरी तो एक कसक मन में थी कि सड़क मार्ग दोनों तरफ खुले हैं, तो ऐसे में हम और खूबसूरती देख सकते थे उस रास्ते कि जो हमें दुनिया की छत तक पहुँचाएगी। मगर इतने दिनों की छुट्टी हमारे पास नहीं थी। सो, मन को साधने की कोशिश की और घंटे भर की दूरी उड़ान से पूरी करने लगे।
जब हवाई जहाज में यह बताया गया कि हम हिमालय श्रृंखलाओं के ऊपर उड़ रहे हैं तो सभी लोग खिड़की से नीचे झांकने लगे। अदभुत नजारे ने मन मोह लिया हमारा। ऊपर नीला आसमान...हमारे नीचे सफेद रूई जैसे बादल और उसके नीचे बर्फ से आच्छादित पहाड़। वाह....हम सब झांक रहे थे नीचे। कोई मोबाइल से तस्वीरें ले रहा था तो कोई कैमरे से। नीचे पतली सी नदी, जैसे सर्प कोई बलखाता चल रहा हो। जरा आगे बढ़ने पर भूरे-काले पहाड़ नजर आए। यह क्रमश: जांस्कर और लद्दाख की शृंखलाएँ हैं। भूरे पहाड़ों पर किसी से सफेदी पोत दी हो, ऐसा लग रहा था। उसके ऊपर घने बादल। कहीं बादलों की छाया से पहाड़ का रंग बदल रहा था तो कहीं इतने घने बादल की कुछ दिखाई न दे।
हम लद्दाख पहुँचने को थे। बाहर का नजारा अब बदला हुआ सा था। ऊँचे पहाड़ों के नीचे हरे रंग की गहरी घाटियाँ और उसके बीच में पीले फूल। कुछेक घर नजर आ रहे थे। बाद में जाना कि ये सरसों के फूल थे। ऊपर से लेह बहुत खूबसूरत लग रहा था। हमें इसी पतली सी घाटी में उतरना था जो ऊपर से एक हरी-पीली नदी की तरह ही दिख रही थी। जांस्कर और लद्दाख की श्रृंखलाओं के बीच रहना था हमें और सबसे उत्तर में कराकोरम पर्वतशृंखला के भी दर्शन करने थे। मगर अभी तो सबसे पहले सपनों के देश में कदम रखना था। हमें हवाई जहाज से उतरने से पहले बाहर के तापमान के बारे में बताने के साथ सावधान भी किया गया कि ऑक्सीजन की कमी होगी। इसलिए अपने स्वस्थ्य का ध्यान रखें और आज सारा दिन आराम करे।
4 comments:
अति उत्तम
बेहतरीन मनोरम दृश्य है.
वर्णन गजब का है.
आपके बताये तरीकों के हिसाब से कभी मैं भी जाने का सौभाग्य प्राप्त करूंगा.
स्वागत हैं आपका खैर
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन पहली भारतीय फीचर फिल्म के साथ ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
आनंददायक है इसे पढ़ना क्योंकि आपने आनंद म़े डूब कर लिखा है.
रोचक!
रश्मि जी..लद्दाख के सफर की बहुत सुंदर शुरूआत की है आपने ।
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