माघी पूर्णिमा का चंद्रग्रहण.....
देखा मैंने चाँद को बढ़ते, घटतेफिर बढ़तेतिल-तिल कर आधा चाँद जब छुपा था
धरती के साये में
तब भी लगा था ख़ूबसूरत
और जब लाल होते हुए
ग़ायब हुआ
नहीं लगा एक बार भी
लगा है कोई ग्रहण
छुपते-छुपते निकल ही आया
माघी पूर्णिमा का
दूधिया चाँद
आज सलिल वर्मा जी ले कर आयें हैं ब्लॉग बुलेटिन की १९५० वीं पोस्ट ... तो पढ़ना न भूलें ...
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, बजट, बेचैन आत्मा और १९५० वीं ब्लॉग-बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
और नीला चाँद ... सुन्दर लिखा है आपने
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' ०५ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.
ReplyDeleteआदरणीय रश्मि जी बहुत प्यारी रचना -- अपना नजरिया , अपनी दृष्टि -- मुझे बहुत अच्छी लगी सस्नेह --
ReplyDeleteवाह!!सुंंदर।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन
सादर