चंद्रभागा के तट पर, जहाँ समुद्र से समाहित होती है नदी, आज वहीँ ,आखों में असीम आनंद लिए प्राची विशाल समुद्र में नदियों का मिलन देख रही थी, कि सहसा बालुई तट पर खड़ी प्राची के पैर सागर ने पखार लिए। आह.....आनंद की अनुभूति, एक गजब का आकर्षण होता है समुद्र का। प्राची का जी चाह रहा था ,छोड़कर किनारा उतरती जाऊं, समाती जाऊं, ठीक समुद्र के बीचों-बीच जहां नीला सागर शांत स्थिर है |
शायद उस के अपने मन की तरह। मन ही मन सोचती है प्राची, क्यों आई सब छोड़कर, सबको छोड़कर। या फिर भागकर, सागर देखने की उत्कंठा तो थी कब से। वह पुरी पहुंचने से पहले सूर्य मंदिर कोर्णाक में कुछ देर के लिए गई थी, पर उसका मन तो सागर में बसा था। उसे पुरी पहुँचने की जल्दी थी।
मगर कल ऐसा क्या हुआ कि बॉस के सामने छ़ुट्टी का आवेदन दिया कि कल ही जाना जरूरी है। भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए। मां की मन्नत पूरी हुई है। कल ही से छ़ुट्टी चाहिए वो भी कम से कम पांच दिनों की।
बॉस के चेहरे से लग रहा था कि उन्हें प्राची की बात पर यकीन नहीं हुआ ,मगर प्राची का चेहरा कह रहा था कि अगर छुट्टी नहीं मिली तो भी चली जाएगी, विदआउट पे लीव पर या नौकरी से इस्तीफा देना पड़े, तब भी।
बॉस ने सेंक्शन कर दी छुट्टी। प्राची के चेहरे पर सुकून आया। मगर उसने ये बात सिर्फ अपनी सहेली निकिता से शेयर की। इस ताकीद के साथ कि ऑफिस के किसी भी सहयोगी को पता न चले कि वह कहां जा रही है। प्राची घर चल दी। शहर कोलकाता नियोन लाइट में जगमगा रहा था। प्राची की आंख में भी आंसू झिलमिला गए अचानक, नियोन लाइट से होड़ लगी हो जैसे !
कई सारे सवाल उमड़ रहे थे प्राची के मन में। वो जानती थी, इसका जवाब उसे खुद ही देना है। पूछना चाहती थी खुद से,क्या हो रहा है,क्यों हो रहा है? उसे पता था निखिल के सामने होते से संभव नहीं। वह सब भूल जाती है सही-गलत । बस लगता है, निखिल सामने रहे उसके बाद उसे दुनिया में किसी भी चीज की जरूरत नहीं।
और निखिल को...?
सुबह के चार बजे ही बिस्तर छोड़ दिया प्राची ने। एक एयर बैग में कुछ कपड़े ठूँसे, मेकअप का जरूरी सामान लिया और जरूरत भर के पैसे, एक एटीएम कार्ड पर्स में डालकर वह बस स्टैंड की तरफ चल पड़ी। वो चाहती थी कि रात होने से पहले जगन्नाथपुरी पहुंच जाए। इसके पीछे दो वजहें थी। एक तो वह अंधेरा होने से पहले पहुंचना चाहती थी ताकि उसे होटल में कमरा मिलने में कोई परेशानी नहीं हो। दूसरा,अगर उसे कमरा नहीं मिला तो उसके अंकल रेलवे में काम करते थे,वहां रेलवेज का गेस्ट हाउस भी था। वहां कुछ इंतजाम हो जाता।
दूसरी अहम् बात,उसने सुन रखा था कि पूनम की रात समुद्र की लहरों काफी तेज उछलती हैं.जैसे चांद को छूना चाहती हों। उसे देखना था ये शानदार दृश्य और संयोग से उस दिन ‘चांद रात’ भी थी।
जब वो समुद्र के तट पर पहुंची, शाम ढल रही थी। समुद्र के दूसरी छोर से चांद निकल रहा ....सफ़ेद, चमकीला। थम से गए कदम प्राची के। एक तरफ रेत के किनारे से बुलाता सागर, दूसरी तरफ होटलों की कतार, जहां उसे रहना था कुछ दिन। सोचने लगी प्राची, पहले होटल लूं या समुद्र को छू लूं। अगले ही पल अपने ऐयर बैग को धम से रेत पर पटका उसने और दौड़ गई समुद्र किनारे।
सूरज के ढलते ही अंधेरा हो गया। रात में समुद्र की आवाज एक भय पैदा कर रही थी। सिहरन सी होने लगी। अपने दोनों हाथों को सीने में बांध वो जाने लगी....पास,और पास, हाहाकार करते समुद्र के। उसे लगा जैसे ये उसके ही दिल की आवाज हो। दूर समन्दर के दूसरे छोर पर चांद रौशन था। गहन समुद्र.,दूर तक पानी ही पानी.,बस लहर उठने के शोर से पता चलता था कि समय सरक रहा है। जी चाहा कि दूर समुंदर में उतरती जाए वो। चलती ही जाए जब तक पानी उसके सांसों की डोर न थामने लगे ।
मगर इस ख्याल को परे झटका प्राची ने। सोचा ये तो आत्महत्या करने वाली बात होगी। उसने ऐसा तो कभी नहीं चाहा। बहुत जीवट है उसमें। जमाने से लड़कर अपना मुकाम बना सकती है।
प्राची लौट चली। पुकारते समुद्र की आवाज को अनसुना करके बैग को एक झटके से कांधे पर चढ़ाया और चल पड़ी। उसे होटल का कमरा भी लेना था। देर हो रही थी। अब सोच-विचार का वक्त नहीं था। अन्धकार अपनी पूरी शिद्दत से पसर चुका था । वह चलते-चलते भीड़भाड़ वाले इलाके से दूर आ चुकी थी। सामने जो होटल आया, उस के रिसेप्शन पर जा कर सीधा पूछा - कोई रूम खाली है कि नहीं। हां में जवाब मिलने पर वो कमरा देखने चली गई । सोचा, जैसा भी हो आज रात रूक जाएगी। पसंद नहीं आएगा तो कल बदल लेगी। मगर कमरा खूबसूरत था। सबसे अच्छी बात कि उसकी फेसिंग समुद्र की तरफ थी। वह अब पास जाए बिना भी समुद्र देख सकती है, जिसके लिए आई है वो। खुश होकर प्राची ने कमरा ले लिया और खाने का आर्डर देकर फ्रेश होने चली गई। उसके आते तक डिनर भी आ गया। अब वो खाना खाकर बाहर बाल्कनी में बैठ गई। हाथ में कॉफी का मग थामे।
अब उसके पास तन्हाई थी, समुद्र था और थी निखिल की यादें। वह इसी के लिए तो आई थी। खुद से बात करने। जीवन की दिशा तय करने। वहां उसके आगे वो मंत्रबिद्ध सी होती है। जैसे कुछ सोच पाना उसके अख्तियार में नहीं।
हां,वो प्यार करती है निखिल को.. बेहद। उसके बिना जीने की कल्पना भी उसे पागल बना देती है। मगर निखिल का कुछ पता नहीं चलता। उसकी आंखें तो कहती है,वो भी आकर्षित है। मगर जुबां कुछ कहना नहीं चाहती। वो चाहती है निखिल एक बार कहे। बहुत असमंजस में है प्राची। उसके सामने कैरियर है,प्यार है, वह क्या करे। डरती है, आगे बढ़कर ये बात निखिल को बताई तो कहीं इंकार से दिल न टूट जाए ।
उसके बाद उसके साथ एक ऑफिस में काम करना संभव नहीं होगा। प्यार मिला,तो खजाना मिलेगा जैसे,न हुआ तो सब छूट जाएगा ,दिल टूटेगा,कैरियर भी समाप्त ।
फिर क्या करेगी वो इस बड़े से शहर में। वापस घर जाकर सब लोगों को,दोस्तों को गाँव के परिचितों को क्या बताएगी। बड़े दंभ के साथ वह घर छोड़कर आई गाँव से यहाँ तक। फिर एक ही साल में अपने माँ बाबूजी को भी शहर ले आई अपने साथ रखने के लिए गोया जता रही हो वो कि आज के दौर में वो किसी बेटे से कम नहीं उन के लिए । फिर उसे अपने पैरों पर खड़ा होना है, मुकाम हासिल करना है। प्यार करने तो नहीं आई इस कोलकाता जैसे शहर में। तो फिर निखिल उसका रहनुमां कैसे बन बैठा ? क्यों वह चकोर की तरह बिहेव करती है? क्यों तकती है उसका रास्ता? इन्हीं सवालों के जवाब खोजने हैं आज उसे यहाँ ।
अब उसे फैसला लेना होगा। खुद को मजबूत बनाने ही तो यहां आई है। कल सुबह भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर अपने मन की दुविधा को दूर करने का आर्शीवाद मांगेगी। उसे सही रास्ता दिखाए कोई।
प्राची जानती है कि निखिल को उसकी केयर है। वो परेशान होगा। मगर भी उसे बता के नहीं आई कि वो कहां जा रही है। उसने अपना मोबाइल भी स्विच -ऑफ कर दिया ताकि कोई उसे डिर्स्टब न कर सके। उसे फैसला लेना है जीवन का,प्यार का,कैरियर का।
अब रात ढल रही है। एकांत कमरे में प्राची सोने की कोशिश में है। समुंदर की लहरें और पूरे चांद को देख उनका उछाल बार-बार आंखों के सामने आ रहा है प्राची के ,काश वो निखिल के साथ यहां आ पाती। उसके साथ जिंदगी बिताना कितना सुखद होता, यह सोचकर उसे रामांच हो आया।
प्राची रात को दस बजे अपनी डेस्क का काम खत्म कर के घर आती है । उस के एडिटोरियल हेड उस के कार्य-व्यवहार से बहुत संतुष्ट हैं। रात अपनी न्यूज़ स्टोरी की आखिरी कॉपी उनके सुपुर्द कर वो कैब से घर चली जाती है ..जहाँ रोज की तरह छत वाले कमरे का अकेलापन उस का इंतजार कर रहा होता है .माँ पहले अक्सर उस के लिए गरम खाना बनाती थी उस के आने के बाद ..मगर बाद में उसने जिद करके माँ को मना कर दिया जिसके दो कारण थे । एक तो माँ की बढती उम्र की वज़ह से उनके घुटनों का दर्द और दूसरा वो खुद इतनी थकी होती है कि खाने की हिम्मत नही होती। चाहती, बस कुछ ऐसा मिल जाए जिसे सीधे गटक लिया जाए हलक में। दलिए की तरह। सो अब उसे खाना भी वहीं कमरे में रखा मिल जाता है जिसे नहाने के बाद प्राची जैसे-तैसे निगलती है और फिर कुछ देर टी वी के बाद सीधे बिस्तर में। वो कभी रात को किसी से भी फोन पर बात नहीं करती। मगर आज ,क्यों बार बार उसे लग रहा है कि बस एक बार निखिल की भारी आवाज़ सुन लूँ । बस एक बार फोन के उस पार से आती उस की साँसे महसूस करूँ । बस एक बार।
इसी असमंजस में उस ने हाथ बढा कर पर्स में पड़ा अपना मोबाइल निकालने का उपक्रम किया, बस इतने में ही उस का दिल जोरों से धड़क उठा। जैसे-तैसे उसने उसे ऑन किया साथ ही उस के मन में हजारों ख्याल एक साथ जुगनुओं की तरह दिपदिपा उठे। निखिल का उस के साथ ‘एक्स्ट्रा-अटेंटिव’ बर्ताव करना, उस की बातों में प्राची ने हमेशा एक सम्मान मिश्रित प्रेम अनुभव किया प्राची ने कभी कोई हलकी बात उस के मुँह से नहीं सुनी। किसी के लिए भी। ऑफिस में सब लोग उसके वाक्-शैली के कायल थे इस के अलावा किसी भी विषय पर गहराई से डिस्कस करने की उसकी क्षमता उसकी योग्यता को रेखांकित करती थी। प्राची निकिता से अक्सर कहती ’गूगल बाबा है ये’ .निकिता हंस कर छेडती उसे ”तेरा क्रश है उस पर” ,और बात यही खत्म हो जाती ।
अपने कॉलेज के दिनों से ही प्राची अपने व्यक्तित्व के चलते हर जगह छायी रहती थी । पढाई , संगीत ,वाद –विवाद प्रतियोगिता हो या फिर फैशन डिजाइनिंग या कॉलेज की छमाही पत्रिका में लेखन, सम्पादन हर जगह प्राची एक हंसमुख विनम्र अभिमान रहित लड़की। कॉलेज के लड़कों की ही नहीं लड़कियों की भी जैसे स्टार रही है वो। उसे याद है कितने ने ही लड़के उस के आते-जाते ,रास्ते में खड़े उसकी राह ताकते रहते । कुछ करीब आ कर बातें करने की कोशिश करते। कई बार उसे अब सोच कर हंसी आती है कि, कैसे किसी भी साल रोज –डे के दिन उसके कॉलेज पहुँचने से पहले ही उसकी डेस्क गुलाबों से भरी होती। लाल ,पीले ,मैरून , पिंक । सबको पता था उसे गुलाबों से बेइंतहा लगाव है। हर बुके के साथ उसके लिए विश लिखी होती, साथ ही लिखा होता उस लड़के का नाम ,और एक दबा सा अस्पष्ट प्रीत –निवेदन।
प्राची उन सब कागज की पुर्जियों को फाड़ कर फेंक देती और गुलाब रख लेती। उसका इतना प्रभावी व्यक्तित्व था कि लड़के उस के साथ रहते, मगर जो किला उसने अपने चारों ओर बना रखा था उसे भेद कर भीतर आने की हिमाकत कोई नहीं कर पाया। और आज जैसे लग रहा है , उन दिनों में मजबूत रही प्राची खुद ही अपने बनाये बनाए किले की प्राचीरें तोड़ने को मजबूर हो।
ऑफिस में भी एक निखिल को छोड़ कर उसने लगभग सभी की आँखों में अपने लिए एक सवाल देखा। कभी वो ‘हम भी खड़े हैं राहों में’ वाली स्टाइल में होता । कभी केवल टाइम –पास जैसा, कहीं किसी सौदेबाज़ी की तरह , कभी निरी लम्पटता से भरा। मगर वो कभी नहीं डगमगाई। नहीं झुकी किसी प्रलोभन के आगे। उस का काम बोलता था, उसकी खबरों की रिपोर्टिंग में उसका नाम बोलता था।
मगर आज इस आधी रात को क्यों टूट रही है वो ,एक ऐसे सहकर्मी के लिए जिसने सामने से कभी कुछ कहा नहीं उसे,कोई इशारा भर भी नहीं किया। बस वो रोज उसका लंच टाइम में वेट करता। साथ चाय पीती उस के साथ रोज। वहीं बहुत सी बातें होती । प्राची अब सोचती है बातें भी क्या, वो बस उसे सुनती मन्त्र मुग्ध सी खो जाती उसकी आवाज़ में। कुछ ही पलों में लगता, जैसे समन्दर तट पर खड़ी है वो । अंधकार में स्वर की लहरों पर सवार है । बहा लिए जा रहा कोई उस के अनछुए मन को। सिहरन सी भर रहा है कोई ,उस अनछुए तन में।
अचानक तन्द्रा सी भंग हुई उसकी। उस ने देखा मोबाइल में पता नहीं कब उसकी उंगलियाँ निखिल का नंबर ढूँढ़ लायी जिसे उस ने ‘ऐ बेबी’ के नाम से सेव किया था। शायद निखिल की बच्चों जैसी निर्दोष आँखों की वज़ह से या सबसे उपर हो ये नाम, इस कारण या शायद दोनों ही वज़ह रही होंगी ।
सर्दी की ये रात तेज़ी से ढल रही थी। फोन हाथ में लिए प्राची उठी। दिल जोरों से धडक रहा था। खिड़की से समन्दर की ओर झाँका जो इस वक़्त हिलोरें ले रहा था । लहरें किनारों की चट्टानों से टकरा रहीं थी। लग रहा था जैसे हज़ारों लहरों पर निखिल का नाम लिखा है , और वो नाम उसके मन की कठोर चट्टानों को भिगो रहा हो ,तोड़ने की, भेदने की कोशिश कर रहा हो। अचानक उसे ख्याल आया निखिल सोते हुए कैसा लगता होगा और ये सोचती सी प्राची एक षोडसी सी लजा उठी।
मगर इस ख्याल वो एक बेतरह ख़ुशी से भर उठी। उसने फोन वापस ऑफ कर दिया। सोचा अगली सुबह भगवन जगान्नाथ के दर्शन करने से पहले वो निखिल से जरुर बात करेगी। अभी नहीं। इस निर्णय के बाद उसे लगा कि अब सो पायेगी वो। हालाँकि सुबह होने को है मगर कुछ घंटे चैन की नींद फ्रेश कर देती है उसे, वो जानती है ये ।
उस ने अब तय किया कि सुबह उठ कर समन्दर के किनारे जब लहरें हौले से उसके पांवों को भिगो रही होंगी ,नम हवाएं उस के बालों को हटा कर उस के चेहरे को चूम रही होंगी और समन्दर के ऊपर आसमान में,निखिल को ले कर उस की कल्पनाओं की तरह असंख्य पंछी उड़ रहे होंगें, तब ऐसे में वो निखिल को फोन से अपने मन की बात बता देगी। प्राची को ये सब सोचते हुए बेहद सुकून मिला और पता ही नहीं चला वो कब अपने होठों पर एक मुस्कान लिए नींद के आगोश में चली गयी।
लगभग दो घंटे की गहरी नींद के बाद वो जागी । खिड़की से बाहर झाँका । देखा भुवन भास्कर सूर्य अभी एक नारंगी रंग के गोले की तरह निकलने के उपक्रम में हैं। शांत समन्दर में बहुत हलकी सी ,चमकीली लहरें जैसे बुला रही थीं उसे।
प्राची जल्दी से अपना कैमरा उठा कर दौड़ पड़ी समंदर की ओर। ये ही पल थे ,हैं ,जो कैद करने हैं उसे । अपने ज़हन में भी, अपने जीवन में भी । इन्हीं को जीते हुए , उसे इन्हीं की साक्षी में बताना है निखिल को अपना फैसला ।
नंगे पाँवों को लहरें चूम रही थीं। प्राची ने वक़्त के इस बेहद ख़ास लम्हे को पहले अपने कैमरे में कैद किया। फिर कांपते हाथों से पर्स से मोबाइल निकाल कर निखिल का नंबर मिलाया ,धडकते दिल से उस की रिंगटोन सुनती रही ”सुनो ना, संगे -मरमर ”।.सुनते हुए उसे लग रहा था जैसे दिल की धडकनें कानो से कनपटियों के निचले हिस्से तक जमा हो रहीं। वो खोयी थी लहरों में गीत में ..उस बेहद रूमानी आलम में अचानक फोन कनेक्ट हुआ ’हलो ,निखिल ...वो जोर से लगभग चिल्लाते हुए बोली ... वहां से कोई रिप्लाई नहीं आई।
‘निखिल.... वो फिर से बोली , इस बार धीमे से ।
“हेल्लो ,वो सोये हैं अभी, आप कौन’ आवाज़ निश्चित ही किसी लड़की की थी।
“जी, मैं उन के ऑफिस से बोल रही हूँ’ किसी तरह रुक रुक कर प्राची ने बताया।
दूसरी तरफ चुप्पी छाई रही ।
“आप कौन," अटकते हुए प्राची ने पूछ लिया किसी तरह .
“मैं मिसेज निखिल और आप ?
फोन हाथ से छूट कर गीले बालू में गिर पड़ा .स्तब्ध खड़ी थी वो।
लहरें अब भी प्राची के पैरों को, फोन को भिगो रहीं थी .... समुंदर की आवाज गूंज रही थी ..लहरें आ रही थी..जा रही थी।
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