वक्त हिरण की तरह कुलांचे मार रहा है। कल बेहद बेहद ठंड थी। पिछले कई सप्ताह से बेतरह ठंढ़ है। आज धूप खिली है...कल.....फिर कल......किसी के रोके से कब रूका है वक्त.....फितरत है.....ये जा..............वो जा।
अालमीरे की गर्द झाड़ी तो लगा वक्त का आईना साफ हो गया.....कई किताबें, अनखुली...बेपढ़ी..
मुस्कराती कथाओं ने मुंह चिढ़ाया.....कहा उलझी रहो.....बतरस के मजे में मेरा सुख तो गवांयां न, खुली आंखों का ख्वाब..पूरा कौन करेगा ?
मुस्कराती कथाओं ने मुंह चिढ़ाया.....कहा उलझी रहो.....बतरस के मजे में मेरा सुख तो गवांयां न, खुली आंखों का ख्वाब..पूरा कौन करेगा ?
कि सनद रहे.......एक दिन के घंटे 24 ही होते हैं....दो जिसे देना है!
अब मुंह बनाए सोच रही हूं...क्या करूं......क्या न करूं...तुम भी जरूरी.....वो भी जरूरी और बाकी...दुनियादारी
अब मुंह बनाए सोच रही हूं...क्या करूं......क्या न करूं...तुम भी जरूरी.....वो भी जरूरी और बाकी...दुनियादारी
तस्वीर- एक दुकान में सजी नकली मोतियों की माला..
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18-01-2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2852 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
शानदार
ReplyDeleteकुछ जरूरी जरूरी है कुछ जरूरी मजबूरी है । बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सड़क दुर्घटनाओं से सब रहें सुरक्षित : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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