मिलन की तीसरी किस्त
.... अब हम दोनों खूब जोर से हंस पड़े। अपनी कल्पना की उड़ान पर तुम मुग्ध दिखे और मैं तुम पर। हंसी थमने पर वेटर को बुलाकर तुमने कुछ स्नैक्स का आर्डर दिया और अपने बगल से एक पैकेट उठाकर मेरी ओर बढ़ाया। वह एक खूबसूरत रैपर से लिपटा गिफ्ट पैक था। मैं खोलने लगी तो रोक दिया तुमने। कहा - ''बाद में खोल लेना''। मैंने कहा...'' मैं तो तुम्हारे लिए कुछ ला नहीं पाई। सब कुछ अनिश्चित सा था''।
तुमने कहा.. ''मुझे कुछ चाहिए भी नहीं तुमसे। बस एक चीज दे दो...जो मैंने कहा था लाने''। मैं असमंजस से देखने लगी उसका चेहरा। वो बोला....''अरे...वो धागा रखने बोला था न मैंने ...मन्नतों वाला धागा जो तुमने मेरे लिए बांधा था एक टुकड़ा अपने ईष्ट देव के मंदिर में और आधा बचाकर रखा था मेरे लिए। वो दे दो। उससे कीमती चीज मेरे लिए कुछ भी नहीं''।
मुझे याद आया एक बार तुम बहुत बीमार पड़े थे। उन दिनों मैं केदारनाथ दर्शन को गई थी। तुम्हारा फोन आया। मैं डर गई थी तुम्हारी कमजोर आवाज सुनकर। मैंने कहा था...''मत चिंता करो। शिव सब ठीक कर देंगे''। और मैंने कुछ नहीं मांगा था शिव से....सिर्फ तुम्हारे लिए प्रार्थना की थी। तुम्हारे स्वस्थ होने की। याद है मुझे तब वहां मेरा मन नहीं लगा था। सारा वक्त तुम्हें सोचने में निकल गया। मगर मेरे लौटने तक तुम ठीक हो गए थे एकदम। तभी कहा था तुमने...''वो धागा संभाल कर रखना। हम जब भी मिलें....मुझे देना''। मैंने उसी वक्त अपने पर्स में रख लिया था। यह संयोग था कि इस सफ़र में वही पर्स था मेरे साथ।
मैंने धागा निकालकर तुम्हारी ओर बढ़ाया। तुमने अपनी कलाई मेरी तरफ बढ़ा दी और चुपचाप मुझे देखने लगे। मैंने वो लाल-पीला धागा तुम्हारी कलाइयों पर बांध दिया। तुमने उसे बहुत श्रद्धा से अपनी ऑंखों से लगाया और बोला....''हमेशा पहनूंगा इसे। शिव का आर्शीवाद और तुम्हारी याद बनाकर संजोए रखूंगा हरदम''।
मैंने देखा...तुम्हारा चेहरा कोमल हो आया था। जैसे कुछ पिघल रहा हो अंदर और उसे संभालने की कोशिश कर रहे थे। मैंने बात बदली। '' फोटो में तो बहुत स्मार्ट लगते थे। अलग-अलग स्टाइल से हजारों तस्वीरें। सामने से तो बिल्कुल बंदर की तरह लगते हो''।
तुम्हारा मुंह बना.....''अच्छा ...बंदर की तरह लगता हूूं....और तुम..और तुम....''
मुझे लगा अब मेरी खिंचाई शुरू होगी। मैं वार झेलने को तैयार थी.....तुमने कहा....''तुम...जैसी तस्वीरों में दिखती हो...उससे बहुत ज्यादा खूबसूरत हो।..बिल्कुल मासूम, बच्चे की तरह निश्छल है तुम्हारा चेहरा.... तुम्हारी निर्दोष आंखें ....''
उफ.....अब कभी किसी बात पर तुमसे झगड़ भी नहीं पाऊंगा कभी....तुम्हारा दिल नहीं दुखा सकता कभी...ईश्वर पाप देगा मुझे.....
मैं चकित होकर उसका चेहरा देख रही थी......उसके बाल हवा से उड़ रहे थे....होठों पर बहुत मीठी मुस्कान थी....और ऑंखे......आइना...मन का
1 comment:
वाह्ह्ह...लाज़वाब...सुंदर👌
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