Thursday, May 25, 2017

तुझसे है पहले का नाता कोई ....


मि‍लन की दूसरी कि‍स्‍त
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नि‍गाहें मि‍लीं ...वो मेरी तरफ़ मुस्‍कराता हुआ बढ़ा। कदमों की तेजी देखकर लगा कि‍ अभी गले लगा लेगा मुझको। मगर नहीं....पास आकर कदम थमे उसके। उसने हाथ भी नहीं मि‍लाया। बस एक आत्‍मीय पहचान उभरी और उसने मेरे हाथों से बैग ले लि‍या। कहा...''पहले बाहर नि‍कलो यहां से''। 

मैं मंत्रमुग्‍ध सी उसके पीछे चलने लगी। कभ्‍ाी कदम साथ होते कभी जरा सा आगे-पीछे। बाहर आकर उसने आवाज दी......टैक्‍सी


मैं ठीक उसके बगल में खड़ी होकर ''टैक्‍सी'' की ओर देखने लगी। समझ नहीं आ रहा था कि‍ अब हम कहां
 जाएंगे। तभी अचानक उसने मुड़कर बहुत धीरे से कहा...''गार्जियस''......मैं एकदम से सुन नहीं पाई । पूछा - कुछ कहा क्‍या ?....उसने होंठों के साथ-साथ आंखों से मुस्‍कराते हुए कहा...''बहुत सुंदर हो तुम, 
बहुत प्‍यारी भी। मेरे अनुमान से कहीं बहुत ज्‍यादा''। 

मैं बि‍ल्‍कुल झेंप सी गई। तब तक टैक्‍सी आ गई थी। हम दोनों उसमें बैठ कर एक रेस्‍तरां पहुंचे। हमारे पास कोई 
और जगह नहीं थी जहां बैठकर बातें करते। मेरे पास केवल दो घंटे का वक्‍त था। फि‍र मुझे दूसरी ट्रेन
पकड़कर अमृतसर जाना था, जहां जाने के लि‍ए मैं अपने घर से नि‍कली थी कि‍ मेरा इंटरव्‍यू है वहां। बीच में ये शहर रोक लेगा मुझको, ये नहीं जानती थी। पीले अमलतास वाला शहर.... 

खैर..अब हम रेस्‍तरां के अंदर थे। ठीक आमने-सामने। 
एक दूसरे को देखते हुए झेंप रहे थे। बात कहां से शुरू करूं...कुछ समझ नहीं आ रहा था। शायद वो भी मेरी तरह अंदर ही अंदर घबराया हुआ था। हम एक दूसरे को देखने के बजाय आसपास के लोगों को ज्‍यादा देख रहे थे। बगल में दो लड़कि‍यां बि‍ंदास तरीके से बैठकर बातें कर रही थी। उसकी नजरें बार-बार उस तरफ़ जाता देख मैंने पूछा.....''बहुत अच्‍छी लग रही हैं क्‍या ये लड़कि‍यां तुम्‍हें''। एकदम घबरा से गए तुम। ''अरे नहीं.....बस यूं ही नज़र चली जा रही थी''। 

अब हम कॉफी के सि‍प के साथ बात शुरू करने का सि‍रा तलाश रहे थे। मैंने ही कहा...''आखि‍रकार हम मि‍ल ही गए...पहली बार''। उसने तुरंत जवाब दि‍या............''ना....याद करो हम पहले भी मि‍ले हैं एक बार''...मैं आश्‍चर्यचकि‍त होकर उसका चेहरा देखने लगी। ''मुझे तो याद नहीं''...कहा मैंने। 

उसने मुस्‍कराते हुए कहा....  ''याद करो..उस 
दि‍न तुम्‍हारे बाल खुले थे। तुम जंगल में कि‍सी फूल की तलाश में नि‍कली थी। मैं उधर से गुजर रहा था। पूछा तुमसे....क्‍या ढूंढ रही हैं आप। तुमने कहा था..घेटू के फूल ढूंढ रही हूं मैं। बड़ी अच्‍छी खुश्‍बू होती है। जंगली फूल है वो। चहकती हुई कहने लगी तुम....मुझे कर्णफूल भी बहुत पसंद हैं। कहीं दि‍खे तो बताना। मैं बहुत दूर नि‍कल गया और तुम्‍हारे लि‍ए कर्णफूल तलाश के लाया। तुमने पहना उसे। बहुत खूबसूरत लग रही थी फूलों का श्रृगांर कर के तुम''। 

मैं मंत्रमुग्‍ध होकर तुम्‍हारी या कहो अपनी कहानी सुन रही थी। तुम ऐसी तन्‍मयता से सुना रहे थे कि‍ लग रहा था सब सच है। ''फि‍र आगे''....मैंने पूछा....

बोले तुम...''अगले दि‍न फि‍र उसी जंगल में हम मि‍ले। अब मैंने पूछा तुमसे कि‍ - तुम कौन हो सुंदरी...अपने पि‍ता का नाम तो बोलो। और ये जो मेरे लाए फूलों का श्रृगांर करती हो....बदले में क्‍या दोगी।
तुम 
शरमा कर पैर के अंगूठे से जमीन कुरेदने लगी। उस वक्‍त तुम्‍हारे बालों में घेटू का फूल महमहा रहा था। और गोरे गाल इतने आरक्‍त थे अंतर करना मुश्‍कि‍ल था कि‍ गाल ज्‍यादा लाल हैं या तुम्‍हारे कानों का कर्णफूल''। 


अब तुम डूबे थे। जैसे हम कि‍सी रेस्‍तरां में नहीं घने जंगल में हैं जहो हमारे अलावा कोई और नहीं।

''मुझे याद है देवयानी...उस दि‍न तुमने काले रंग की एक कंचुकी पहनी थी। तुम्‍हारा उत्‍तरीय  गहरे हरे रंग का था और घुटने तक लांग पहनी थी लाल रंग की...मराठी लड़कि‍यों की तरह....

मैंने 
रोका उसे...''सुनो....ये कब की बात है.....और मेरा नाम देवयानी तो नहीं....ये क्‍या कह रहे तुम'' ? तुमने एक गहरी नजर मुझ पर डाली....डूबी सी आवाज में बोले...''ये अतीत है हमारा देवयानी....तेरा-मेरा..हमारा''.....

'' पि‍छले जन्‍‍‍म  की बात है.....तुम्‍हें क्‍‍‍‍या याद नहींं ''?  


तस्‍वीर- घेटू के फूल

क्रमश: 

3 comments:

Sweta sinha said...

सुंदर शब्द विन्यास रश्मि👌

डॉ एल के शर्मा said...

संवेदनाओ की कवियित्री जब कथ्य लिखे तो लगता है कहानी कविता की सखी हो गई ।

HARSHVARDHAN said...

आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति नहीं रहे सुपरकॉप केपीएस गिल और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।