Sunday, May 21, 2017

आए हैं तुझसे मि‍लने की हसरत लि‍ए....



मि‍लन की पहली कि‍स्‍त
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सारा दि‍न दि‍ल धकधक करता रहा, जैसे सीने पर ही ट्रेन चल रही हो कोई। 24 घंटे का सफ़र 24 बरस का हो गया हो जैसे।कई ख्‍याल, कई कल्‍पनाएं और ढेर सारा डर....

आाखि‍र पहली बार तो मि‍ल रही थी उससे। बस मंजि‍ल पर पहुंचने को थी। बेसब्री मेरे चेहरे से झलक रही थी जैसे। आसपास के लोग बड़े गौर से चेहरा देख रहे थे मेरा। मैं बेचैनी में बार-बार दरवाजे तक जाती और लौट आती। बंद दरवाजे के शीशे के बाहर पेड़ रफ्तार पकड़ के दौड़ रहे थे। जैसे उन्‍हें मुझसे भी ज्‍यादा जल्‍दी है कहीं पहुंचने की।

अमलतास पूरे शबाब में था। झूमते, गर्मी के अहसास को दरकि‍नार करते। हां, वो अमलतास वाला शहर ही था, जहां मुझे मि‍लता वो। जब पहली बार दि‍ल में दस्‍तक हुई थी तब यही अमलतास साक्षी था। तब बहुत उदास लगा था मुझे, पर आज नहीं। मि‍लन के रंग से खि‍ला-खि‍ला था और भी।

ट्रेन की रफ़्तार कम हुई मगर दि‍ल की धड़कन बढ़ गई। ट्रेन रूकने से पहले ही गेट पर खड़ी हो गई। कि‍सी की नजर मुझे ढूंढ तो नहीं रही......कोई चेहरा जो जाना-पहचाना सा हो। पहली बार मि‍लूंगी उससे। देखूंगी उसको। जो तस्‍वीर देखी थी जाने उससे मि‍लती है शक्‍ल या नहीं।

नि‍:संदेह ये परीक्षा की घड़ी थी। आंखों में 'सि‍र्फ तुम' फि‍ल्‍म का मंजर याद आ गया। एक दूसरे के करीब से वो लोग जैसे नि‍कल गए वैसे कहीं हम भी.......पता नहीं पहचान पाऊंगी या नहीं।

ट्रेन रूकते न रूकते अपना एयरबैग थाम धप्‍प से जमीन पर। अब इंतजार नहीं होता। मुझे उसे देखना है जि‍सके लि‍ए मैं पागल हूं। जि‍सकी खाति‍र सब भूलकर मैं मि‍लने चली आई हूं।

तभी वो दि‍खा.....पीठ पर लैपटाॅप बैग लटकाए..मेरी फेवरेट सफ़ेद शर्ट और ब्‍लू जींस में। वो खड़ा था बुक स्‍टॉल के ठीक बगल में, पीलर के पीछे। मैेने देखा..उसके गालों में कंपन थी। जाने तेजी से दौड़कर आने के कारण या मि‍लने की घबराहट से......

वही था...बि‍ल्‍कुल वही....

क्रमश: 

5 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (23-05-2017) को
मैया तो पाला करे, रविकर श्रवण कुमार; चर्चामंच 2635
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

दिगम्बर नासवा said...

मंज़र आँखों के सामने चल चित्र सा घूम गया ... जी कोई फिल्म गुज़र गयी ...

रश्मि शर्मा said...

धन्यवाद

रश्मि शर्मा said...

धन्यवाद सर

Sweta sinha said...

बहुत सुंदर अगली किस्त का इंतज़ार रहेगा