Saturday, March 18, 2017

दौड़ती-भागती जि‍ंदगी


पढ़ी हुई क़ि‍ताब का
तुम वो सफ़ा हो
जो बेहद पसंद है मुझे
मगर मैं बार-बार पढ़ना नहीं चाहती
इसलि‍ए बंद रखती हूं
यादों की वो कि‍ताब
जि‍ससे तुम्‍हारी रुपहली मुस्‍कान
झांका करती है गाहे-बगाहे
और तुम
अरसे बाद बीच-बीच में
बाहें पसारे चले आते हो
जैसे मेरी खाति‍र
वक्‍त को थाम रखा है
जि‍ंदगी दौड़ती-भागती फि‍र रही है
कुछ लम्‍हों को
ऐसी शाख पर रख छोड़ा है
जो पतझड़ में भी मुरझाती नहीं....। 

2 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "यूपी का माफ़िया राज और नए मुख्यमंत्री “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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