तुम वो सफ़ा हो
जो बेहद पसंद है मुझे
मगर मैं बार-बार पढ़ना नहीं चाहती
इसलिए बंद रखती हूं
यादों की वो किताब
जिससे तुम्हारी रुपहली मुस्कान
झांका करती है गाहे-बगाहे
और तुम
अरसे बाद बीच-बीच में
बाहें पसारे चले आते हो
जैसे मेरी खातिर
वक्त को थाम रखा है
जिंदगी दौड़ती-भागती फिर रही है
कुछ लम्हों को
ऐसी शाख पर रख छोड़ा है
जो पतझड़ में भी मुरझाती नहीं....।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "यूपी का माफ़िया राज और नए मुख्यमंत्री “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeletebahut bahut aabhar aapka
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