कभी आँगन में फ़ुदकती
कभी
खाट के पायों पर आकर
बैठती थी गौरैया
धान के बोरे में चोंच घुसाने को
दरवाजे की फांक से अन्दर
फ़ुदक कर
अक्सर आ जाती थी गौरैया
नहीं डरती थी वो ज़रा भी
बिल्कुल पास चली आती थी
इधऱ-उधर बिखरे दानों को चुग
चीं-चीं कर उड़ जाती थी गौरैया
छत पर सूखने को माँ रखती थी
भर- भर सूप चावल
छतरी की तरह ढांप कर
ढेरों चावल खा जाती थी गौरैया
जब कभी बरखा में भीग
आती थी, देखकर भी मुझको
बड़े आराम से फ़ड़फ़ड़ा कर पंख
ख़ुद को सूखती थी गौरैया
हाँ, मेरे बचपन की
साथी थी गौरैया
कभी मेरे घर आँगन में
खूब आती थी गौरैया
वाह वाह बहुत खूब
ReplyDeleteअब कहाँ वो दिन ... अब तो दूर दूर तक नज़र नहीं आती गौरैया ... इंसान की अर्थ की भूख पता नहीं कितनों को और लीलेगी ...
ReplyDeleteआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति विश्व गौरैया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
ReplyDeleteसाथॆक प्रस्तुतिकरण......
ReplyDeleteमेरे ब्लाॅग की नयी पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा....
Aapka Blog Bahut Hi Acha Hai
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