Monday, March 20, 2017

साथी थी गौरैया...


कभी आँगन में फ़ुदकती
कभी
खाट के पायों पर आकर
बैठती थी गौरैया

धान के बोरे में चोंच घुसाने को
दरवाजे की फांक से अन्दर
फ़ुदक कर
अक्सर आ जाती थी गौरैया

नहीं डरती थी वो ज़रा भी
बिल्कुल पास चली आती थी
इधऱ-उधर बिखरे दानों को चुग
चीं-चीं कर उड़ जाती थी गौरैया

छत पर सूखने को माँ रखती थी
भर- भर सूप चावल
छतरी की तरह ढांप कर
ढेरों चावल खा जाती थी गौरैया

जब कभी बरखा में भीग
आती थी, देखकर भी मुझको
बड़े आराम से फ़ड़फ़ड़ा कर पंख
ख़ुद को सूखती थी गौरैया

हाँ, मेरे बचपन की
साथी थी गौरैया
कभी मेरे घर आँगन में
खूब आती थी गौरैया

5 comments:

  1. अब कहाँ वो दिन ... अब तो दूर दूर तक नज़र नहीं आती गौरैया ... इंसान की अर्थ की भूख पता नहीं कितनों को और लीलेगी ...

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  2. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति विश्व गौरैया दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  3. साथॆक प्रस्तुतिकरण......
    मेरे ब्लाॅग की नयी पोस्ट पर आपके विचारों की प्रतीक्षा....

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