1. न कहेंगे कभी कि कितनी मोहब्बत है आपसे
आपकी बेरूखी ने दिखा दिया आईना हमें ।।
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2. चूमकर पेशानी एक रात कहा था उसने
जैसी जिंदगी वैसी तू भी अजीज है मुझको
दस्तूर-ए-दुनिया से नावाकिफ़ ए दिल
खाकर हजार ठोकरें अब भी सच समझता है इसे।।
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3.मत पूछ कि तुम बिन जीना कितना दुश्वार था मेरा
जो साथ जिया तो भी क्या हासिल हो गया यहां ।।
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4.तेरे कदमों तले रख दिया दिल उसने
सोचकर कि कभी तो रहम आएगा
भूल गया ये बात कि
जमीं पर गिरे फूलों को माथे नहीं लगाता कोई।।
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5. सूखी नदी पर कश्तियां उतारने वाले
एक बार तो सोचा होता
डूब ही जाते किसी के प्यार में तो
कम से कम ज़माना याद करता ।।
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एक बार तो सोचा होता
डूब ही जाते किसी के प्यार में तो
कम से कम ज़माना याद करता ।।
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6.उम्र गुजर गई न आया शऊर जीने का
हम खुद को बड़ा ज़हीन समझा करते थे।।
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हम खुद को बड़ा ज़हीन समझा करते थे।।
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7. नोच कर फेंक दो फूलों की सारी पंखुडियां
कि अब फूल भी नकली खिला करते हैं
खूबसूरती पर रीझ के न आना भवंरे
कि फूल भी अब खुश्बू उधार लिया करते हैं।।
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कि अब फूल भी नकली खिला करते हैं
खूबसूरती पर रीझ के न आना भवंरे
कि फूल भी अब खुश्बू उधार लिया करते हैं।।
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8. कह दो कि खुशियों से कि न आए दर मेरे
मैंने अपने घर का नाम वीराना रखा है।।
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मैंने अपने घर का नाम वीराना रखा है।।
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9. समेट कर खुशियां सारी अपने दामन में
चले जाओ अब दूर..बहुत दूर
कि अब दुआओं में निकले लफ्ज सारे
मुझे झूठ की इबा़रत लगते हैं ।।
चले जाओ अब दूर..बहुत दूर
कि अब दुआओं में निकले लफ्ज सारे
मुझे झूठ की इबा़रत लगते हैं ।।
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10. एक फ़रेब पर टिकी थी जिंदगी, तोड़ दिया उसने
सितम ये है कि आहों पर भी है अब बंदिशें तमाम।।
सितम ये है कि आहों पर भी है अब बंदिशें तमाम।।
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11. दिल की ज़मीन पर लिख लिया है
तेरे इनकार के हरेक लफ्ज को
कि प्रेम के सागर में
एक बूंद नहीं लिखी मेरे नाम की।।
तेरे इनकार के हरेक लफ्ज को
कि प्रेम के सागर में
एक बूंद नहीं लिखी मेरे नाम की।।
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12.न रोना अब न जुंबा खोलना कभी
खुद को खुदा समझने वाले पत्थर दिल ही होते हैं ।।
खुद को खुदा समझने वाले पत्थर दिल ही होते हैं ।।
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13. एक भ्रम था, एक आस थी, एक ख्वाब था
कभी न कोई मेरे पास था
चले जाओ ऐ दिल अब तुम किसी और जहां में
नाकामियों के सिवा कुछ नहीं तेरे पास था ।।
चले जाओ ऐ दिल अब तुम किसी और जहां में
नाकामियों के सिवा कुछ नहीं तेरे पास था ।।
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14.न देखा पलटकर एक बार भी प्यार से उसने
हम जिनकी राहों में पलकें बिछाया करते थे।।
हम जिनकी राहों में पलकें बिछाया करते थे।।
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15. सहरा में ला पटका दिल की ढिठाई ने हमें
कभी हम भी गुलशन का हिस्सा हुआ करते थे।।
कभी हम भी गुलशन का हिस्सा हुआ करते थे।।
5 comments:
उम्दा अशआर
vaah
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 24 फरवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ये अशआर नहीं बिखरे हुए लम्हे हैं जिंदगी के ... सजीव ...
बहुत सुन्दर
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