Wednesday, February 22, 2017

मोहब्‍बत के अशआर



1. न कहेंगे कभी कि‍ कि‍तनी मोहब्‍बत है आपसे
आपकी बेरूखी ने दि‍खा दि‍या आईना हमें ।।

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2. चूमकर पेशानी एक रात कहा था उसने
जैसी जिंदगी वैसी तू भी अजीज है मुझको
दस्‍तूर-ए-दुनि‍या से नावाकि‍फ़ ए दि‍ल
खाकर हजार ठोकरें अब भी सच समझता है इसे।।

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3.मत पूछ कि‍ तुम बि‍न जीना कि‍तना दुश्‍वार था मेरा
जो साथ जि‍या तो भी क्‍या हासि‍ल हो गया यहां ।।

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4.तेरे कदमों तले रख दि‍या दि‍ल उसने
सोचकर कि‍ कभी तो रहम आएगा 
भूल गया ये बात कि
जमीं पर गि‍रे फूलों को माथे नहीं लगाता कोई।।

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5. सूखी नदी पर कश्‍ति‍यां उतारने वाले
एक बार तो सोचा होता
डूब ही जाते कि‍सी के प्‍यार में तो
कम से कम ज़माना याद करता ।।

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6.उम्र गुजर गई न आया शऊर जीने का
हम खुद को बड़ा ज़हीन समझा करते थे।।

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7. नोच कर फेंक दो फूलों की सारी पंखुडि‍यां
कि‍ अब फूल भी नकली खि‍ला करते हैं
खूबसूरती पर रीझ के न आना भवंरे
कि फूल भी अब खुश्‍बू उधार लि‍या करते हैं।।

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8. कह दो कि खुशि‍यों से कि‍ न आए दर मेरे
मैंने अपने घर का नाम वीराना रखा है।।

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9. समेट कर खुशि‍यां सारी अपने दामन में
चले जाओ अब दूर..बहुत दूर
कि‍ अब दुआओं में नि‍कले लफ्ज सारे
मुझे झूठ की इबा़रत लगते हैं ।।
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10. एक फ़रेब पर टि‍की थी जिंदगी, तोड़ दि‍या उसने
सि‍तम ये है कि‍ आहों पर भी है अब बंदि‍शें तमाम।।
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11. दि‍ल की ज़मीन पर लि‍ख लि‍या है
तेरे इनकार के हरेक लफ्ज को
कि‍ प्रेम के सागर में
एक बूंद नहीं लि‍खी मेरे नाम की।।
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12.न रोना अब न जुंबा खोलना कभी
खुद को खुदा समझने वाले पत्‍थर दि‍ल ही होते हैं ।।
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13. एक भ्रम था, एक आस थी, एक ख्‍वाब था
कभी न कोई मेरे पास था
चले जाओ ऐ दि‍ल अब तुम कि‍सी और जहां में
नाकामि‍यों के सि‍वा कुछ नहीं तेरे पास था ।। 
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14.न देखा पलटकर एक बार भी प्‍यार से उसने
हम जि‍नकी राहों में पलकें बि‍छाया करते थे।।
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15. सहरा में ला पटका दि‍ल की ढि‍ठाई ने हमें
कभी हम भी गुलशन का हि‍स्‍सा हुआ करते थे।।

5 comments:

Lokesh Nashine said...

उम्दा अशआर

Udan Tashtari said...

vaah

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 24 फरवरी 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा said...

ये अशआर नहीं बिखरे हुए लम्हे हैं जिंदगी के ... सजीव ...

Onkar said...

बहुत सुन्दर