अपने इंतजार को
पेंडुलम की तरह झूलता देख
दर्द को सीने में दबाए,
बस..जाना ही चाहती थी दूर
कि तभी
मुड़कर देखना चाहा
एक अंतिम बार
उस मासूम से चेहरे को
जिसने छीन लिया मेरा चैन
यहीं
हो गई एक प्यारी भूल
कि झुककर चाहा
चूम लूं अंतिम बार
अपने प्रिय का गरदन
और कह जाऊं
जी न पाएंगे तुम बिन
कि वजूद सारा
डूबा है प्रेम में
और कुछ बचा नहीं मेरे अख़्तियार में
अब तुम हो...चंद सांसे हैं
अधरों पर अंकित है
एक सुहाना अहसास
मोगरे के फूलों सा महकता
मन का आंगन
बस तेरी याद....तेरी याद
4 comments:
दिनांक 23/02/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंदhttps://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
जब उनकी यादों का सिलसिला शुरू होता है ख़ुद पे इख़्तियार भी कहाँ रहता है ...
सुन्दर।
वाह!!!
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