फगुनौटी बौछारों में
पछुवा बनी सहेली जैसी
तन सिहरन पहेली जैसी
और, फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।
परबत ने संकेत दिए
टेसू से, उड़ते बादल को
पागल परबत को भिगा गए
जैसे नेह भिगो दे ,आँचल को
पेड़ पेड़ पर टांक गया
फूलों के गुलदस्ते कोई
मौसम की बहारों में ।।
टेसू से, उड़ते बादल को
पागल परबत को भिगा गए
जैसे नेह भिगो दे ,आँचल को
पेड़ पेड़ पर टांक गया
फूलों के गुलदस्ते कोई
मौसम की बहारों में ।।
और फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।
मन वीणा के तारों में ।।
धूप चदरिया बिछा गई है
गॉव की अमराई में
अबीर बरसती रही रातभर
ओस बन बनराई में।
अमलतास से पीले दिन में
नशा घुल गया आँखों में
मद - रस, अधरछुहारों में ।।
गॉव की अमराई में
अबीर बरसती रही रातभर
ओस बन बनराई में।
अमलतास से पीले दिन में
नशा घुल गया आँखों में
मद - रस, अधरछुहारों में ।।
और ,फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।
मन वीणा के तारों में ।।
मन की आस का छोर नहीं
बढ़ती जाती है निस दिन
परदेसी का ठौर नहीं
प्यास हिया बुझे किस दिन
अकथ पहेली से परिणय का
गीत रचूं मैं कब तक ,
चक्षु नदी के किनारों में ।।
बढ़ती जाती है निस दिन
परदेसी का ठौर नहीं
प्यास हिया बुझे किस दिन
अकथ पहेली से परिणय का
गीत रचूं मैं कब तक ,
चक्षु नदी के किनारों में ।।
और फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।
मन वीणा के तारों में ।।
फगुनौटी बौछारों में
पछुवा बनी सहेली जैसी
तन सिहरन पहेली जैसी
और, फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।
और, फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।
4 comments:
बहुत सुन्दर।
अति सुंदर रचना। फगुआ की शुभकामनाये
सरल, सहज भाषा में सुन्दर भाव
और फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में
.. दिल की तार बज उठे .
बहुत सुन्दर ..
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