Wednesday, February 15, 2017

फगुआ पैठ गया मन में


फगुनौटी बौछारों में
पछुवा बनी सहेली जैसी
तन सिहरन पहेली जैसी 
और, फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।



परबत ने संकेत दिए
टेसू से, उड़ते बादल को
पागल परबत को भिगा गए
जैसे नेह भिगो दे ,आँचल को
पेड़ पेड़ पर टांक गया
फूलों के गुलदस्ते कोई
मौसम की बहारों में ।।

और फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।

धूप चदरिया बिछा गई है
गॉव की अमराई में
अबीर बरसती रही रातभर
ओस बन बनराई में।
अमलतास से पीले दिन में
नशा घुल गया आँखों में
मद - रस, अधरछुहारों में ।।

और ,फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।

मन की आस का छोर नहीं
बढ़ती जाती है निस दिन
परदेसी का ठौर नहीं
प्यास हिया बुझे किस दिन
अकथ पहेली से परिणय का
गीत रचूं मैं कब तक ,
चक्षु नदी के किनारों में ।।

और फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।

फगुनौटी बौछारों में
पछुवा बनी सहेली जैसी
तन सिहरन पहेली जैसी 
और, फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में ।।

4 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

बहुत सुन्दर।

पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा said...

अति सुंदर रचना। फगुआ की शुभकामनाये

गोपेश मोहन जैसवाल said...

सरल, सहज भाषा में सुन्दर भाव

कविता रावत said...

और फगुवा पैठ गया ,
मन वीणा के तारों में
.. दिल की तार बज उठे .
बहुत सुन्दर ..