मुन्नार से निकलकर कोवलम जाने के लिए हमें कोच्चि वापस आना पड़ा। वापसी का रास्ता काफी ऊब भरा लग रहा था। एक तो ड्राइवर की गाड़ी चलाने की रफ़़्तार काफी धीमी, दूसरी ओर आठ घंटे का सफ़र सोचकर ही हमें थकान होने लगी। ऊपर से चक्कर खाने वाले रास्ते से मुझे ही सबसे ज्यादा तकलीफ होती है।
मगर रास्ते के दृश्य बहुत लुभावने थे। कोच्चि पार कर हमलोग एक जगह रूके चाय के लिए। भूख लग गई थी। बच्चों ने केले खाए। स्वादिष्ट केले थे। फिर हम अपने सफ़र को निकले ऊंघते हुए। पता नहीं कितनी दूर गए होंगे। रास्ते में एक बड़ा मंदिर दिखा। ड्राइवर से पूछते-पूछते कि कौन सा मंदिर है, गाड़ी आगे निकल गई। मुश्किल यह थी कि उसे न हिंदी आती थी न ठीक से इंग्लिश। बड़ी मुश्किल से समझा तो उसने रोकी गाड़ी। उस जगह का नाम वाइकॉम था।
हम सभी गाड़ी के बाहर ऐसे भागे जैसे कैद से छूटे हों। बहुत बड़ा मंदिर परिसर था। बाहरी दीवार लकड़ी की थी और उस पर दिये जलाने का जगह बनाया हुआ थाा। देखकर ही पता लगता था कि वहां पर दिये जलते होंगे शाम को। कुछ लोग काले कपड़े पहन कर घूम रहे थे। ऐसे काले कपड़े वालों को हमलोगों ने कोच्चि एयरपोर्ट पर भी देखा था। पीतल के गुम्बद बने हुए थे। बाहर एक जगह नंदी की प्रतिमा थी। हमें समझ आ गया कि यह शिव मंदिर है। मुख्य द्वार से अंदर जाने के समय बाहर नृृत्यमुद्रा में दो पीतल की मूर्तियां लगी थी। पता चला कि सभी पुरूषों को ऊपर के वस्त्र उतारकर अंंदर जाना होगा। सबने अपने शर्ट उतारकर हाथ में ले लिए। बच्चों को मज़ा आने लगा क्योंकि गर्मी थी।
जब हम अंदर जा रहे थे, कुछेक लोग दिखे। मगर अचानक से खूब भीड़ अंदर आने लगी। बहुत मुश्किल से मुख्य मंदिर के बाहर पहुंचे। गहन अंधकार। कोई बिजली का बल्ब नहीं। हां, जगह-जगह दिये जल रहे थे मगर वो अर्पायाप्त थे। अंदर से आरती के लिए बज रही घंटी की आवाज आ रही थी। महिला-पुरूष सभी हाथ जोड़े खड़े थे। हमने अंदर देखने की कोशिश की, मगर कुछ दिखाई ही नहीं पड़ रहा था। घोर अंधकार। तभी दो पुजारी के हाथ में दियाा दिखे और धीरे-धीरे काले शिवलिंग की आकृति हमें दिखने लगी। घोर अंधेरे के बीच में दिये की रोश्ाानी में आरती होने लगी।
हम अभिभूत थे। रहस्यमय सा लग रहा था सब। एक बड़ा सा शिवलिंंग और उसके इर्द-गिर्द घूमती दिये की लौ। बहुत मन हुआ चुपके से फोटो ले लूंं। मगर मनाही थी सो मंत्रमुग्ध हो देखते रहे। मगर पूरी आरती नहीं देख सके क्योंकि हम आधे रास्ते तक भी नहीं पहुंचे थे। मन मसोसकर बाहर आना पड़ा।
पता लगा यह वाईकाॅम शिव मंदिर का निर्माण त्रेता युग में हुआ था। तब से आज तक लगातार इसमें बिना विध्न पूजा हो रही है। यह केरल के सबसे पुराने और ऐतिहासिक मंदिरों में से एक है। यह अद्वितीय मंदिर है क्योंकि यहां शैव और वैष्णव समान रूप से पूजा करते हैं।
वाईकॉम महादेव मंदिर का नाम केरल इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा है क्योंकि वाईकॉम सत्याग्रह (अस्पृश्यता के खिलाफ एक संघर्ष) की उल्लेखनीय घटना 1924 में यहाँ हुई थी। मंदिर के इष्टदेव भगवान शिव हैं और मंदिर परिसर आठ एकड़ में फैला है। वर्ष 1924 के इस सत्याग्रह का नेतृत्व टी.के. माधवन ने किया था । सत्याग्रह ने वाईकॉम के मंदिर सड़क पर निचली जातियों को चलने का अधिकार दिया था मंदिर प्रवेश कानून के लिए भी मार्ग प्रशस्त किया ।
ऐसा माना जाता है कि मंदिर के पवित्र स्थान में भगवान शिव की मूर्ति खारासुर (खारा दानव) द्वारा स्थापित की गयी थी। पौराणिक कथाओं के अनुसार दानव खारा के हाथ में दो शिवलिंग और एक गले मेंं था। खारा के बाएं हाथ का शिवलिंग एट्टुमान्नूर, गले वाला कडुतुरुति और दाहिने हाथ के शिवलिंग को वाईकॉम में स्थापित किया गया था। यह माना जाता है कि एक ही दिन में तीनों जगह शिवलिंग के दर्शन करने से मनोअभिलाषा पूर्ण होती है।
मंदिर में मनाया जाने वाला मुख्य त्योहार वाईकॉम अष्टमी है जो नवंबर – दिसम्बर के महीने में आयोजित होता है। यह त्योहार 12 दिनों तक मनाया जाता है। भगवान गणेश की पत्थर की मूर्ति और नंदी की एक मूर्ति मंदिर परिसर में स्थित है। वाईकॉम महादेव मंदिर, कुमारकोम से लगभग 22 किमी और कोट्टयम शहर से 32 किमी की दूरी पर स्थित, तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। इस दिन जितने दीपस्तंभ है, वो प्रकाशित किए जाते हैं। भव्य वातावरण होता है उस दिन।
चूंकि हमें इन बातों की जानकारी नहीं थी, हम ऐसे ही पता नहीं किस आकर्षण से वशीभूत होकर चले गए थे, हमें बहुत अच्छा लगा। बाहर निकलने की जरा भी इच्छा नहीं थी मगर समय का ख्याल भी रखना था। हम वहां से निकले। रास्ते में यह बातें करते ही जा रहे थे कि जब शाम होगी तो इस जगह पर सारे दीपस्तंभ जल उठेंगे तो कितना भव्य लगेगा देखना। अंधेरा घिरने लगा था। हम कुछ दूर निकले होंगे कि सड़क के दाहिनी ओर एक खूबसूरत मंदिर दिखा, जहां लोग दिये जला रहे थे। हमने तुरंत गाड़ी रोकी और भागे मंदिर की ओर। किसी देवी का मंदिर था वो। अभी कपाट बंद था और मंदिर के चारों तरफ दिये जलाए जा रहे थे।
अब हम अति उत्साह मेंं थे। जो सोचा नहीं था, वो भी देख लिया। थोड़ी दूर आगे बढ़े तो फिर देखा कि रास्ते में दीप जल रहे हैं। मंदिर के बाहर, घरोंं के बाहर। रास्ते में। ठीक दीपावली की तरह। हमारे मन में ख्याल आया कि क्या केरल के हर घर में शाम को देहरी पर दीप जलाने का रिवाज है। थोड़ी देर में एक जगह जाम मिला। देखा कुछ लोग पीले वस्त्र पहकर जा रहे थे। पता लगा ये लोग दक्षिण भारत के संत श्री नारायण गुरू के अनुयायियों का काफिला है। तिरुवंतपुरम से 51 किलोमीटर पहले वर्कला शिवगिरी है। शिवगिरी में नारायण गुरू की समाधि है। गुरु की समाधि के दर्शन के लिए हर साल शिवगिरी तीर्थयात्रा के मौसम में लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं। शायद इनके स्वागत के लिए ही राहों में दीप जलाए गए थे। जो भी हो, हम एक अभूतपूर्व अनुभव से दोचार हो रहे थे। हमारा रास्ता उत्साह और उमंग के साथ कट रहा था।
अब हमें जल्दी थी कोवलम पहुंचने की। अभी आठ से कुछ ज्यादा वक्त हुआ होगा कि हमें दिखाई पड़ा कि कोवलम 70 किलोमीटर दूर। हम बेहद खुश हुए कि बहुत जल्दी पहुंच जाएंंगे। घंटे भर बाद माइलस्टोन पर नजर पड़ी तो दूरी और ही कुछ बता रही थी। पता चला कि हमने कोल्लम देख लिया है कोवलम के बजाय।
कोचीन से त्रिवेंद्रम तीन से चार घंटे का रास्ता है। दरअसल कोचीन से त्रिवेंद्रम जाने के दो रास्ते हैं एक कोट्टयम होकर और दूसरा अलेप्पी होकर। अलेप्पी होकर जाने वाला रास्ता समुद्र तट के साथ का ट्रैक है जबकि कोट्टयम का रास्ता थोड़ा अंदर से और लंबा भी है। हमारे वाहन चालक ने यही रास्ता चुना था जिस कारण हमें मंदिर के दर्शन हुए और हम देर से पहुंचे। कहीं फायदा तो कहीं नुकसान भी।
अनाड़ी ड्राइवर होने का नुकसान यह हुआ कि हमें जगह-जगह रूककर पूछना पड़ रहा था आगे का रास्ता। अब हम केरल की राजधानी तिरुवननतपुरम (त्रिवेन्द्रम) में थे। शहर सोया पड़ा था। कुछ पुलिसवालों से कोवलम का रास्ता पूछ हम आगे बढ़े। आखिरकार रात के 12 बजे के आसपास हम होटल पहुंचे। होटल समुन्दर से सटा हुआ था। बच्चे तुरंत तट की ओर भागे, मगर हमारी डांट खाकर वापस आए। हम कमरे में गए। बाल्कनी से दिख रहा था समुन्द्र और लाइट हाउस की रौशनी।
अब सुबह का इंतजार था बस....
7 comments:
दिनांक 17/01/2017 को...
आप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद... https://www.halchalwith5links.blogspot.com पर...
आप भी इस प्रस्तुति में....
सादर आमंत्रित हैं...
सुंदर यात्रा वृतांत ... आखित तिवेंद्रम पहुँच ही गए ...
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति ब्लॉग बुलेटिन और ओपी नैय्यर में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
बहुत सुन्दर ...वाईकॉम सुनने में कोई साईट लगती है लेकिन वाईकॉम महादेव मंदिर है, वह भी ऐतिहासिक तो पढ़कर ख़ुशी हुए, मन को अच्छा लगा ...
नंदी महाराज के कान में क्या फुसफुसाया?
धन्यवाद
हां। हम पहुँच ही गए।
ऊबाऊ रास्ता भगवान के दर्शन करते हुए कटा
बहुत सुन्दर
http://savanxxx.blogspot.in
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