जोधपूर किले की |
बेतहाशा भीड़ थी उस रोज। मेला लगा था, हर बरस की तरह। वो दोनों लड़का-लड़की भी साथ घूमने गए। किले के बाहर हजारों दुकान सजे थे। कपड़े, गहने, चूडियां, रंग-बिरंगे दुपट्टे, घर के सामान। दोनों साथ-साघ घूमते हुए बातें करते जा रहे थे। लड़के का ध्यान मेले पर था और उस लड़की से बातें करने पर भी। बहुत देर तक दोनों घूमते रहे।
अचानक लड़की ने कहा...चलो आज इत्ती दूर आए हैं तो किले के अंदर भी घूम लें। लड़का भी सहमत हो गया। शायद वो जरा एकांत भी चाहता था। बाहर मेले में बेहद भीड़ थी। अब वो किले के अंदर थे। हालांकि दोनों पहले भी किला घूम चुके थे। मगर साथ साथ घूमने का यह पहला मौका था।
जब महल के कमरों से निकलकर वे गलियारे में आते तो जरा सा सट जाते। इतना कि हल्का स्पर्श होता रहे और लगे भी नहीं। चेहरे की खुशी देख कर लग रहा था दोनों को यह अहसास बहुत भा रहा है। दोनों जमाने भर की बातें करते जा रहे थे। बात का सुख...स्पर्श का सुख।
जब सीढ़ियां चढ़नी होती, लड़का लड़की का हाथ थाम लेता। जरा अंधेरा कोना आने पर लड़की को अपने बदन से और सटा लेता लड़का..लड़की शरमा जाती। दोनों एक दूसरे के बदन की गर्मी पाकर और खुश होते, जैसे खजाना हाथ लगा हो कोई।
बहुत देर हो गई। वो ठीक बाहर निकलने को थे कि रंग-बिरंगे दुपट्टों में लड़की का मन अटक गया। लाल, पीले, नीले शोख रंग से दुपट्टे। बांधनी के रेशमी दुपट्टे। लड़की रूक गई, लड़का बेख्याली में जरा आगे निकल गया। जब लड़की ने नजर ही नजर में सारे दुपट्टों काेे अपने में रख कर देख लिया, तय किया कि इसमें से एक लेना ही है, तो पाया की चारों तरफ भीड़ है और उस लड़के का पता नहीं। उसकी नजरें सब तरफ लड़के को तलाशने लगी। वो कहीं नजर नहीं आया।
अब वो बाहर भागी, पीछे से दुकान वाला आवाज देता रहा...बाहर निकलकर देखा तो एक स्तंभ के सहारे वो लड़का खड़ा था। देख रहा था उसे मुस्कराते हुए जैसे उसकी बेचैनी में अपने होने के मायने तलाश रहा हो वो।कोई बेक़रार है सिर्फ मेरे लिए, कितना गहरा अहसास है। खुद के बेशकीमती होने का।
अपनी फूली हुई सांसों को थामते हुए लड़की बिल्कुल पास जा खड़ी हुई। एकदम से बोली....मुझे बाहाें में भरो, जाेर से। अब लड़का अकबकाया.....यहां...इतनी भीड़ में। लड़की जिद्दी..बोली हां..अभी इसी क्षण। मेरी धड़कनेंं काबू में नहीं।
लड़का समझ गया, पल भर को आंखों से ओझल होना उससे बर्दाश्त नहीं। उसने बाहों का घेरा बनाकर पकड़ा। जमाने को भूल..जमाने के बीच...अकेले। फिर उसकी ऊंगलियां में ऊंगलियां फंसा ली। स्पर्श की प्रगाढ़ता से लड़की आश्वास्त हुई। खुद को जरा और करीब किया उसके। दोनों सटे रहे, बिना बोले। अचानक हंस पड़े। मुस्कराते हुए हाथ थामा और गेट के बाहर निकल गए।
अब वो बाहर भागी, पीछे से दुकान वाला आवाज देता रहा...बाहर निकलकर देखा तो एक स्तंभ के सहारे वो लड़का खड़ा था। देख रहा था उसे मुस्कराते हुए जैसे उसकी बेचैनी में अपने होने के मायने तलाश रहा हो वो।कोई बेक़रार है सिर्फ मेरे लिए, कितना गहरा अहसास है। खुद के बेशकीमती होने का।
अपनी फूली हुई सांसों को थामते हुए लड़की बिल्कुल पास जा खड़ी हुई। एकदम से बोली....मुझे बाहाें में भरो, जाेर से। अब लड़का अकबकाया.....यहां...इतनी भीड़ में। लड़की जिद्दी..बोली हां..अभी इसी क्षण। मेरी धड़कनेंं काबू में नहीं।
लड़का समझ गया, पल भर को आंखों से ओझल होना उससे बर्दाश्त नहीं। उसने बाहों का घेरा बनाकर पकड़ा। जमाने को भूल..जमाने के बीच...अकेले। फिर उसकी ऊंगलियां में ऊंगलियां फंसा ली। स्पर्श की प्रगाढ़ता से लड़की आश्वास्त हुई। खुद को जरा और करीब किया उसके। दोनों सटे रहे, बिना बोले। अचानक हंस पड़े। मुस्कराते हुए हाथ थामा और गेट के बाहर निकल गए।
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