Sunday, October 30, 2016

दीपावली की बधाई .....जगमग-जगमग दीप जले



अगले दि‍न सुबह नींद खुलती तो देखती पापा और दादी बड़े से बरतन में पूजा घर के सारे भगवान को नहला रहे होते। उस दि‍न सुबह सि‍र्फ पूजा के कमरे की सफाई होती और भगनाव नए वस्‍त्र पहनते। उस दि‍न पूजा होने तक पापा व्रत रखते। मां रसोई में लगी होती। हम बच्‍चे नााश्‍ता करने के बाद बड़े से बाल्‍टी या टब में पानी भर सारे दीये भि‍गो देते। घंटे भी बाद पलट के रखते।अपने घरकुंदवा या घरौंदा सुंदर से सजाते। दोपहर तक नहा-धोकर नए कपड़े पहन लेते।

अक्‍सर गोधूि‍ल बेला में दीया जलाया जाता था। मां पूजा के कमरे में लक्ष्‍मी पूजन की तैयारी करती और मैं और छोटी बहन थाली में घी के दीपक लगाते। नये कपड़े पहनकर तैयार हो जाते। हम सहेलि‍यों में यह बात पहले तय हुई रहती थी कि‍ शाम को मंदि‍र में दीपक लगाने साथ ही चलेंगे। जैसे सांझ ढलने काे होती, सहेलि‍यां घर के सामने आ जाती। मेरे घर के आगे ही शि‍व और दुर्गा मंदि‍र था। गांव के हर घर से कोई न कोई आता पहले मंदि‍र में दीया जलाने। नि‍यम था कि‍ पहले मंदि‍र में भगवान के आगे दीया लगेगा, फि‍र सबलोग अपने घर में लगाएंगे।

हम थाली में दीप लेकर घर के सामने वाले मंदि‍र में सबसे पहले जाते। वहां दीया जलाकर प्रणाम करते फि‍र सहेलि‍यों के साथ बातें करते हुए दूसरे मंदि‍र की ओर नि‍कलते। गांव के दोनों छोर पर दो मंदि‍र थे। हमलोग दोनों मंदि‍र में दीया लगाते। इसी क्रम में पूरे् गांव की परि‍क्रमा भी हो जाती और हम सजावट देख लेते। तब तक सारे घरों में दीये लगने शुरू हो जाते। कि‍सी घर की छत पर दीया स
जा मि‍लता तो कि‍सी घर के बाहर केले का थंब लगाकर उस पर दीया इस तरह से लगाया मि‍लता कि‍ि‍ अद्भुत दृश्‍य नजर आता। कहीं बच्‍चे फूलझड़ी छोडते मि‍लते। 

इस तरह हम सारे गांव घूमकर घर आते। तब तक मां घर को दि‍ये से रौशन कर रही होती या उसकी तैयारी में लगी होती। इधर पूजा चलती रहती और हम कोने-कोने को रौशन कर रहे होते। छत, आंगन, कुंआ यहां तक कि‍ गौशाला में भी दि‍ये सजाते। मजे की बात कि‍ हमें जरा भी थकान नहीं होती। तब तक पूजा संपन्‍न हो जाती। मां की आवाज पर आरती में शामि‍ल होते।


इसके बाद बारी आती हमारे घरौंदों के पूजन की। हमारे हाथों से बना हमारा छोटा सा घर पूरा सजा संवरा रहता। दूधि‍या मि‍ट्टी के लीपने के बाद उस पर रंग-बि‍रंगी चि‍त्रकारी कर हस्‍तकला का नमूना पेश करते थे हम।
जि‍तने मि‍ट्टी के खि‍लौने थे, उन सबको सजा देते थे छोटे से घर में। हमारी ग्‍वालि‍न के हाथों के दि‍ए झकमक जलने लगते और घर भरने के लि‍ए भाई के नाम से छोटे चुकि‍ए में खील-बताशे भरते। सबसे दि‍लचस्‍प बात है कि‍ उसमें पांच तरह के अनाज होते थे और दीपावली के एक दि‍न पहले हम खुद भुनवा कर लाते थे।


प्रसाद लेने के बाद सीधे घर के बाहर। पटाखों का थैला सबके हाथ में होता और फूलझड़ी़, आलू बम, सांप, बीड़ी बम, जलेबी, अनार...;क्‍या कुछ नहीं होता था हमारे पास। जी भरकर पटाखे छोड़ते और पूरे मैदान में दौड़ते फि‍रते..दोनों हाथों में फूूलझड़ी थामे..जैसे हमारे पैरों को जलेबी की रफ्तार मि‍ल गई हो।  

नहीं भूल पाती वो पल..वो दि‍न। जब सारे पटाखे खत्‍म हो जाते तो सामने मंदि‍र में जाकर बैठ जाती और अपने सजे हुए घर को अपलक देखती। लगता..इससे सुंदर घर नहींं कोई दूसरा। हो भी नहीं सकता। तब तक मां की फि‍र आवाज आती...खाना खा लो पहले। हमलोग सब मि‍लकर भोजन करते। उसके बाद फि‍र एक दौर चलता पटाखों का। इस बार मां-पापा भी शामि‍ल होते हमारे साथ।   




देर रात तक कई दौर चलता पटाखों का। इस बीच मैं तेल और बाती लेकर एक चक्‍कर सारे दीयों की लगाती। जि‍स दीये का तेल कम मि‍लता उसमें दुबारा तेल भरती और जि‍सकी बाती ज्‍यादा जल चुकी हो, उसे बदल देती। मेरा यह कार्य तब तक चलता रहता जब तक मैं नींद से चूर होकर बि‍स्‍तर में नहीं चली जाती। सारेे लोग सो जाते और मैं दीया-बाती करती रहती।

इसी रात मां काजल बनाती थी आंखों में लगाने के लि‍ए। घी के दीये के ऊपर कांसे का कटाेरी पलटकर रख देती थी रात को सोने के पहले। सुबह जब उसे पलटकर देखते तो कालि‍ख की मोटी परत बि‍छी मि‍लती। उसे कजरौटे में भरती थी मां और हम बच्‍चों को काजल लगाती थी।

दीपावली की रात ऐसा लगता जैसे आकाश के सारे तारे जमीं पर आ गए। तब पूजा पाठ से मतलब नहीं था। दीये रौशन करना और पटाखे चलाना। देर रात हम सोते पर सुबह जल्‍दी जागना होता। 

5 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

सुंदर यादें ... सुंदर पोस्ट और आपकी छवि भी बहुत ही प्यारी ... उजास भरी

दिगम्बर नासवा said...

अब कहाँ वो दिन पुरानी मस्तियाँ .... अब सिर्फ दिवाली की यादें हैं आज हर त्यौहार का रंग बदल गया है ...
आपको दीपावली की हार्दिक बधाई ...

सुशील कुमार जोशी said...

शुभकामनाएं ।

शिवम् मिश्रा said...

ब्लॉग बुलेटिन टीम और मेरी ओर से आप सभी को दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं|


ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "ब्लॉग बुलेटिन का दिवाली विशेषांक“ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

Amrita Tanmay said...

यादें अनमोल हैं ।