मैं पूरे वर्ष मिट्टी के दिये जलाती हूं। कुम्हार के घर जाकर खुद ले आती हूं। अभी तो कार्तिक के महीने में तुलसी के आगे दीपदान की प्रथा है, मिट्टी के दिये में।
फिर दीपावली.....कोई कुछ करे, कहे...पूरे घर में मिट्टी के दिये लगाती हूं....तीन दिनों तक। हालांकि श्रमसाध्य है पर मुझे भरपूर खुशी मिलती है। इस बार तो चीनी सामग्री के बहिष्कार की भी बात है....क्यों न अपने गली-मुहल्ले वाले कुम्हार से दिये और खिलौने खरीदे आप भी......
फिर दीपावली.....कोई कुछ करे, कहे...पूरे घर में मिट्टी के दिये लगाती हूं....तीन दिनों तक। हालांकि श्रमसाध्य है पर मुझे भरपूर खुशी मिलती है। इस बार तो चीनी सामग्री के बहिष्कार की भी बात है....क्यों न अपने गली-मुहल्ले वाले कुम्हार से दिये और खिलौने खरीदे आप भी......
4 comments:
main to hamesha se hi cheeni saman ka bahishkar karti hun....kyunki mere to ek hi maa hai ....
सहमत
सही कहा. चीनी सामान हमारे उद्यमों को ख़त्म कर रहा है.
हमारे घर में भी अब तक यही दीये आते रहे हैं। इन्हें जलाना सच्चा संतोष देता है दीप पर्व का।
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